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Showing posts from June, 2018

जयकरी छंद/ जयकारी छन्द

🌺  चौपई/जयकारी/जयकरी छंद  🌺 विधान~ चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ, अंत में गुरु लघु।दो-दो चरण समतुकांत। जय  हो   श्री  राघव सरकार। त्रिभुवन   महिमा  अपरम्पार।। मर्यादा      पुरुषोत्तम   आप। करते   समन  सकल  संताप।। पुनि पुनि नावहुँ चरणन शीश। करिये    कृपा   कौसलाधीश।। "सोम"झुकाये निश दिन माथ। मोरे   हृदय   बसहुँ   रघुनाथ।।                                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम" 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁    🎋चौपई/जयकारी/जयकरी छंद🎋 विधान~ चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ, अंत में गुरु लघु, दो-दो चरण समतुकांत जय जय हो सबकी जयकार| जयकरी  छन्द  करे  पुकार|| राम  नाम  का  हो  मनुहार| सकल कर्म है जीवन सार|| शाला में  नित  सुंदर छंद| भाव  जगाते  प्रभु के वंद|| मधुर-मधुर सी मधु मकरन्द| शब्द  बोलते  जय बृज  नंद|| राधारानी  की  जयकार| जन जन में होवे सहकार|| कृष्ण  कृपा से हो जग पार| भजन  मुक्ति  का है आधार|| प्रेम  दया है मनु का धर्म| तन मन से हो सेवा कर्म|| कोमल पावन हिय हो नर्म| सरल सरस हो जीवन मर्म|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

संविधान गीत

      संविधान बाबा भीम राव अम्बेडकर जयन्ती पर विशेष गीत~ आज तेरे अरमान का, प्यारे गला घुँट गया यार, ऐसा बदल गया संसार ओ बाबा बदल गया संसार| नियम न बदलें, नियम न माने, कैसा है ये व्यवहार, ओ बाबा बदल गया संसार| आरक्षण की बैशाखी का, खोखला है बाजार, ओ बाबा बदल गया संसार| संंविधान न बदला, मनुज बदल गये, चले मनमौजी चाल, ओ बाबा बदल गया संसार| डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'   जय जय

सागर (साहिल)

♂🏊🏻‍♂🤽🏻‍♂🌺🌺🌺💐🌺🤽🏻‍♂🏊🏻‍♂🏄🏻‍♂             सागर सागर की लहरें सनम को बुलाएँ, वो  जब न आए  तो कैसे  बिताएँ, समय कट रहा है मुश्किल से साथी, साहिल पे जाकर मिलन गीत गाएँ|        © साहिल           🌺  सागर 🌺 रूठ जाती है दुनिया हमसे कभी, नैन मिलते नही बढ़ती मदहोशियाँ बेरुखी उनकी जैसे हो सागर कोई, जा के साहिल पे मिटती है बेचैनियाँ। उनकी यादें मिटाने लहर पे  गया,  खो गया जाके भँवरों में, मैं फँस गया, आँख खोली तो देखा मैं सफ़रगार था, मेरी यादों में अब साहिल बस गया। मैं भी हैरान हूँ देख जुल़्मोंसितम, कैसे इंसा ही इंसा पे करें है सितम, गम़ के सागर का सफ़र है जिन्द़गी, पी  गया  सारे  साहिल कैसे सितम।     🚣 © साहिल 

प्रीती 'साहिल'

सतत सप्रेम से सद्भावना का साथ मिल जाए| महका हुआ सा मधुर प्रियवर हाथ मिल जाए| जिन्दगी कट तो रही स्वारथ के रिश्तों से, स्नेह संग सजनी का प्यारा साथ मिल जाए| व्यवहार की अभिव्यंजना अनुभव दिखाती है| शतरंज के इस खेल को प्रीती निभाती है|               साहिल

शिक्षा में परिवर्तन

देश की शिक्षा व्यवस्था यही है, आजकल जो बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, उसका कोई महत्व नहीं समझ में आता| शिक्षा रोजगारपरक भी नहीं है, क्या पढ़ा रहे हैं, क्यों पढ़ा रहे हैं ?  उससे बच्चे के अंदर नैतिकता संस्कार, भारतीय संस्कृति को बढ़ाने हेतु, व्यवहार एवं शैक्षिक परिवर्तन कुछ भी विकसित नहीं हो पा रहा है, वाकई में शिक्षा व्यवस्था अत्यंत बिगड़ चुकी है|                    यह बहुत ही सोचनीय विषय है, हम सब को खुलकर आगे आना होगा| शिक्षा व्यवस्था में बदलाव हेतु सभी कदमों की ओर ध्यान देना होगा और यदि जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करना होगा |  हमारे बच्चों के संस्कार नैतिकता सामाजिक व्यवहार एवं रहन- सहन बोलचाल आदि सभी चीजों में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है, नकरात्मक व्यवहार देखने को मिल रहा है जो कि हमारे बच्चों परिवार एवं समाज के लिए अत्यंत हानिकारक है| रोजगारपरक, आध्यात्मिक, वैदिक यौगिक एवं संस्कार पूर्ण शिक्षा का समावेश करना होगा तभी बच्चों युवाओं एवं देश का उत्थान संभव है| *वर्तमान शिक्षा पद्धति में सकारात्मक सार्थक एवं संस्कार पूर्ण परिवर्तन की विशेष आवश्यकता है|* शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षा  व्यवस्

शब्दों की प्रेरना डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

तुम मेरे  शब्दों की प्रेरना हो, अन्तः  स्थल  की  वेदना हो| तुम मेरी कविताओं का आधार हो, मन का विचार हो, जीवन का सार हो, प्रेम का प्रकार हो, हृदय का आकार हो, जल सी निर्विकार हो, गले का हार हो, सकल सहकार हो, रूह की पुकार हो| डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' 27/05/2018 11:50 रात्रि

अनुगामिनी

    🧝‍♂ अनुगामिनी 🧝‍♂ मुझको भाए  सरस कामिनी, सुख -  दुख में है सहगामिनी, सुंदर  प्यारी मधुरिम मधुरिम, बन जा तु  पथ अनुगामिनी| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

देवता/ दिव्यता

         देवता/ दिव्यता भाव में हो भव्यता, राग में हो रम्यता| देवता की दिव्यता, नूतन हो नव्यता| स्वभाव में हो नम्रता, आदर विनम्रता| अंत हो अधीनता, काम में तल्लनीता| धर्म में हो दिव्यता, प्रेम में हो तन्यता| मनु में हो मनुष्यता, दंश है दनुजता| गुरुवर की शिष्यता, विषय में हो विज्ञता|     © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

कवि की महिमा

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁                कवि की महिमा बस माहौल में रहकर, देख सुनकर, मैं भी अपनी भाषा को दो साल की उम्र से ही  बोलना सिख गया, और विद्यालय में गुरुओं एवं परिवारिक शिक्षा के द्वारा अपनी भाषा को लिखना भी सीख लिया| कुछ दिन में अन्य विषयों एवं शब्द संकेतों से पाला पड़ा, बस सीखते - सीखते यह महसूस हुआ कि शब्द गंगा, विषय सरिता एवं भाषा सिन्धु में हम डूबते जा रहे हैं, पता नही इसका अंत भी है या नही, पढ़ते- सीखते, डुबकी लगाते 25 वर्ष बीत गए, फिर शुरु हुआ मन, आत्मा एवं हृदय की अन्तर्वेदना को सुनकर उसमें अपने सकारात्मक, सार्थक विचारों को जोड़कर अभिव्यक्त करने का एक शानदार माध्यम जिसे हम कविता के माध्यम से जानते हैं|            शायद किसी ने सच ही कहा कि कविता में शब्दों को पिरोकर सौन्दर्य पैदा करने की कला केवल कवि के पास है और यह गुन भी ईश्वरीय वरदान है, क्योंकि अनुभवी भाषायी ज्ञान एक साहित्यकार की नींव हो सकता है, परन्तु सामाजिक गतिविधियों के प्रति संवेदनशीलता को उद्वेलित होकर शब्द रूप दे देना एवं मानवीय संवेदनाओं के अन्तः स्थल को काव्य में रच देना, एक नैसर्गिक ईश्वरीय वरदान है| कवि

रुचि छंद (साहिल)

     🌺 रुचि छंद 🌺 विधान~ [ तगण भगण सगण जगण गुरु ] (221  211  112   121   2) 13 वर्ण, 4 चरण, (यति 4-9) [दो-दो चरण समतुकांत] है  छन्द की, गुन महिमा बड़ी यहाँ| है ज्ञान की, अनुपम सी कड़ी यहाँ|| मानो   यही, गुरुवर  हैं  बड़े  यहाँ| पाने कृपा , प्रियवर भी खड़े यहाँ|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

तिलका छन्द (साहिल)

       तिलका छंद शिल्प:- सगण सगण(112 112) [दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण] सुर साज  सजा| लय ताल  बजा|| अब  तो सज ले| प्रिय को भज ले|| चल  संग  चले| लग जाय गले|| रजनी   चमके| सजनी  दमके|| बहके  तन को| सँभले मन को|| सुख चैन मिले| सत रैन  मिले|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'        तिलका छंद शिल्प:- सगण सगण(112 112) [दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण] माँ वरदा वर दो जननी| सुधरे  करनी|| सत मात कहूँ| नित माथ गहूँ|| वरदा  तुम   हो| सफला तुम हो|| गुन की प्रतिमा| तुम हो  गरिमा|| दिन रात  भजूँ| मद काम तजूँ|| मन मोद  भरूँ| सत काम करूँ|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'    तिलका छंद विधान-सगण सगण            112 112 (दो दो चरण तुकांत, 6 वर्ण) ================== मद  को हर के| मुद को भर के|| कटते  दुख  हो| मन में सुख हो|| मिलते  प्रभु  जी| जप लूँ विभु जी|| शुभ काम  करूँ|  जग नाम  करूँ|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

चन्द्रिका छन्द

    🌺चन्द्रिका छंद🌺 विधान-नगण नगण तगण तगण गुरु (111 111 2   21 221  2) दो दो चरण समतुकांत, 7, 6 यति। सुखमय  नयना, रात तारा दिखे| मधुरिम सजनी,बात प्यारी लिखे|| बरबस  मनवा, मोह  माया चुने| प्रतिपल हियवा, प्रीत माला गुने|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

मद (साहिल)

👨🏻‍✈ मद  🧝🏻‍♂ मद लोभ दम्भ दुर्भाव द्वेष, अन्याय दुख  को दूर करें| जीवन में कौशल प्रतिभा से, जन सेवा का आरम्भ करें|| मद झूठ और कुविचारों का, चुन चुन कर बहिष्कार करो| मन मन्दिर के हृदयालय में, प्रभु महिमा का सार भरो|| सुखमय सुर की सरिता सा, प्रतिपल  में  उल्लास भरो| सुख सागर की गहराई सा, तन - मन में मधुमास भरो|| कर्म धर्म का मर्म समझकर, सदा चरण के साथ चलो| धन माया का दर्प व्यर्थ है, इसे जल्द स्वीकार करो|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

इन्दिरा छंद (साहिल)

     🌺  इन्दिरा छन्द  🌺 विधान- नगण रगण रगण लघु गुरु = 11 वर्ण चार चरण दो- दो चरण समतुकान्त जगत रीत  का भाव हो सदा| हृदय प्रीत  का चाव हो सदा|| मधुर गान  से  जीत  लीजिए| सकल धर्म का काम कीजिए|| सरल  सोम  जी गान गाइए| सरस ओम का तान लाइए|| भगत  दिव्य है तेज साधना| मधुर  राम की दर्श कामना|| सृजन  छंद का नित्य कीजिए| तमस काम को त्याग दीजिए|| परम  तत्व   है  ईश   जानिए| सकल  सत्य  है  देव  मानिए||  © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'    🌺इन्दिरा छंद🌺 विधान - [नगण रगण रगण + लघु गुरु] 111 212  212 12, चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत सकल राम का नाम जापिए| सुगढ़  धर्म से काम नापिए|| मन विचार से शुद्ध रूप हो| तन  बुहार लो धाम भूप हो|| परम सत्य  को मान लें जरा| सकल भूमि पे जन्म लें मरा|| करम धर्म  को मान लीजिए| जगत ईश का गान कीजिए||    ©डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

मोदी जी पर अभिव्यक्ति (साहिल)

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 लोगों ने मजबूर कर दिया लिखने पर, बहुत ही साधारण व्यक्ति हूँ, कभी कभी मन की अभिव्यक्ति को शब्दों का रूप दे देता हूँ| भावनाएँ कुछ लोगों के दिल को छू जाती हैं और कुछ लोगों को पढ़कर नींद नहीं आती है| एक सच्चा देशभक्त, जो दिलो जान से, आत्मा से लगा हुआ है राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करने में अपने दिन रात एक कर रहा है, देश के उत्थान के लिए, उस देश भक्त की बुराई आखिरकार अदना सा सामान्य राष्ट्र में रहने वाला कोई भी इंसान जिसके दिल में भावना है जिसके शरीर में आत्मा है, वह कैसे कर सकता है| कोई भी इंसान जो अपने परिवार के दायित्व को भी नही उठा सकता, उसे हक नहीं है राष्ट्र के किसी भी व्यक्ति के बारे में बोलने का| जी हांँ!  आप लोगों ने सही समझा मैं सोशल मीडिया एवं व्यक्तिगत और सामूहिक समूह में कई दिनों से देख रहा हूं कि लोग मोदी जी की बुराई कर रहे हैं हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी की हर गतिविधि पर बुराई और निंदा में लगे हुए हैं अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक दायित्वों को भूलकर सिर्फ और सिर्फ निंदा और बुराई में लगे हुए हैं| अनर्गल ब

एचीवमेंट अवार्ड २०१८ (प्रभांशु कुमार जी)

कला किसी की मोहताज नहीं होती।  कुछ ऐसा ही कर दिखाया है प्रभांशु कुमार जी इलाहाबाद ने।आदरणीय प्रभांशु जी को मिशन न्यूज चैनल नई दिल्ली द्वारा 10 जून को शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए बेस्ट अचीवमेंट अवॉर्ड 2018 बतौर मुख्य अतिथि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया जी एवं राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा श्री स्वाती मालीवाल के हाथों से यह राष्ट्रीय सम्मान मिला। 

देवता/ दिव्यता

        देवता/दिव्यता भाव में हो भव्यता, राग में हो रम्यता| देवता की दिव्यता, नूतन हो नव्यता| स्वभाव में हो नम्रता, आदर विनम्रता| अंत हो अधीनता, काम में तल्लनीता| धर्म में हो दिव्यता, प्रेम में हो तन्यता| मनु में हो मनुष्यता, दंश है दनुजता| गुरुवर की शिष्यता, विषय में हो विज्ञता|   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

पनघट (साहिल)

        गीत        पनघट प्रेम का दीप मन में जलाए चलो, बाती आशा की इसमें लगाए चलो| सूने पनघट पे प्यासे बुलाए चलो, स्नेह सिंचन से उनको भिगाएं चलो| किसी भूखे को रोटी, खिलाए चलो, राह भटके हुए को,  दिखाए चलो| पाठ सेवा का सबको पढ़ाए चलो, भाग्य अपने करम से बनाएँ चलो| दीप पनघट पे ऐसा जलाते चलो, प्यास सारे मनुज की बुझाते चलो| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

30/05/2018 अखिल भारतीय काव्य सम्मेलन, बीसलपुर, पीलीभीत, उ० प्र०

🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹🍁 30/05/2018 अखिल भारतीय काव्य सम्मेलन, बीसलपुर, पीलीभीत, उ० प्र० "यादें" [पत्रकारिता दिवस/अखिल भारतीय काव्य सम्मेलन, परसिया बीसलपुर पीलीभीत उ० प्र०] (30/05/2018) के समारोह की      _जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति बीसलपुर-२२६ द्वारा ग्राम  परसिया में अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन और जनपद के एक दर्जन से अधिक पत्रकारों का सम्मान समारोह करा कर एक नयी एतिहासिक परम्परा की नींव रखी किसी ग्रामीण अंचल में ऐसा कवि सम्मेलन होना स्वयं में इतिहास है |_ रात्रि 8:00 बजे इस भव्य आयोजन का शुभारम्भ  वीणावादिनी सरस्वती माता के आराधन के साथ हुआ|            कार्यक्रम की अध्यक्षता वाराणसी से पधारे डॉ.लियाकत अली "जलज" और सुश्री सुशीला धस्माना"मुसकान" जी ने की,  सुश्री रश्मि शुक्ला तथा सभी कवि व पत्रकारों ने  माँ को दीप, सुगंध, रोली अक्षत ओर पुष्प अर्पित कर पूजन किया| तदोपरान्त पत्रकारों का सम्मान किया गया|         परसिया ग्राम में पहली बार अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित यह समारोह एक यादगार बनकर रह गया देश के कई प्रदेशों से आये कवियों ने मनमोहक रचनाएं प्