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Showing posts from May, 2018

कविता कैसी होती है (साहिल)

     गीत भ्रान्ति नहीं अनुभूति थी मेरी                क्यूं तन्द्रा में सोती है एक दिन मेरे मन मे आया               कविता कैसे होती है धुआँ देखी ज्वाला देखी         उभयादिक् सम बेला देखी अमर्त्य आग की मर्त्य जलन मे           जलती जीवन लीला देखी उफनाती जिज्ञासा लहरे               मन में ही क्यूं उठती है एक दिन मेरे मन में आया                कविता कैसे होती है ईश्वर से जग भिन्न नहीं              गोचर जगती से जाना इसी अपावन दृश्य में देखा               पावन का ताना-बाना *गंगा* जैसी पावन नदियाँ                  क्यूं नाले को ढोती है एक दिन मेरे मन में आया                कविता कैसे होती है शिखर मौन है देखा मैने             झरना देखा गरज रहा ज्योति छिपा है सघन कुँज में            तम का देखा कहर यहाँ आज प्रकृति को देखा मैने            छिप-छिप के वो रोती है एक दिन मेरे मन में आया                कविता कैसे होती है इतने से मन नहीं भरा           थी जीवित साकार खड़ी कष्ट भरी कविता क्यूं होती           बात यहीं थी बहुत बडी जब भूखे अपने बच्चे को          माँ उर लिपट

कर्तव्य

       कर्तव्य बड़े बुजुर्गों ने सिखाया, गुरुओं ने भी याद कराया, कठिन डगर पर भटक न जाना अपने कर्तव्यों को निभाना |  सदा प्रज्जवलित कर्मों से, आदर्शों  के मर्मो  से, सत्य सनातन धर्मो से, अपने कर्तव्यों को निभाना |  सदा प्रेम से  जीते जाना, सुख- दुख तो है आना जाना, आशा का ही  दीप जलाना, अपने कर्तव्यों को निभाना | ©  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

दहेज

  दहेज बेटा बेटी एक समझकर उनको खूब पढ़ाओ जी इस दहेज के दानव को मिलकर दूर भगाओ जी| प्रेम भाव से सेवा करना, बेटी को सिखलाओ जी, सच्ची शिक्षा से बेटों को, आगे खूब  बढ़ाओ जी | बिन दहेज के शादी हो, बेटों को  बतलाओ जी, युवा शक्ति ही बदलेगी, परिवर्तन दिखलाओ जी| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की विशेष शुभकामनाओं सहित 🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂

स्वच्छता अभियान

कुछ उदाहरण ~ १) सेहत का सब रखो ध्यान| मन में मत करना अभिमान| २) सुन्दर और स्वच्छ घर बार,    रहैं निरोगी सब परिवार | ३) घर से बाहर शौच न जाओ| शौचालय अब तो बनवाओ| ४) हाथ साफ कर, आँख साफ कर सुबह शाम नित दाँत साफ कर । ५) ताजे जल से  रोज नहाओ, जीवन को खुशहाल बनाओ| ६) सदा स्वच्छता को अपनाओ सब बीमारी को दूर भगाओ| ७) शौचालय  पहले  बनवाओ, नई दुल्हन तब घर  में ळाओ| ८) नकदी जेवर दुल्हन दहेज, माँ बहनों का सम्मान सहेज| ९) चाचा दादा  मौसी आओ, लोटा लेकर मैदान न जाओ, घर में शौचालय बनवाओ, बीमारी से खुद को बचाओ| १०) आँख, नाक, मुँह, केश सँवारो, अपना  आँगन  स्वंय बुहारो| 🙏🌹😃   साहिल

मुक्तक 'साहिल'

               मुक्तक बहर-212, 212 , 212 ,212 *साथ तेरा जनम भर निभाता रहा,* *प्यार के भाव से गीत गाता रहा|* *जिन्दगी संग में यूँ ही' कटती रही,* *प्रीत की बात को गुनगुनाता रहा|* *नासमझ मैं रहा शक्ल पर मर गया,* *प्रीत को रीत उसने बताया मुझे|* *खेल ऐसा हुआ साहिल फँस  गया,* *मीत को जीत मैं तो समझता रहा|* © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'              इलाहाबाद उ० प्र०      करुणा 1222×4 बिछड़के यूँ मिरा दिलबर चला जब दूर जाता है| तड़पता छोड़ जाता और हो मजबूर जाता है|| दिलों से फिर वही करुणा निकलती आग बनकरके| कहूँ क्या हाल मैं दिल का लिए वो नूर जाता है||          🌷साहिल    १२२२×४ दिलों की हलचलें समझो ज़रा तुम प्यार तो कर लो , बढ़ी है धड़कने सुन लो, जरा इजहार तो कर लो,    वही अब  बन गई है जिन्दगी  की हमसफर मेरी, फसाने  प्रेम  के  मेरे  सही  स्वीकार  तो कर लो|           ❤ साहिल 🙏 

भक्ति छंद 'साहिल'

🌹  भक्ति छंद  🌹    221  122  2 7 वर्ण  4 चरण फेरे हम  ना  लेगें| कोई दुख ना देगें|| शादी बिन वो मेरी| ना  चाहूँ पल देरी|| तारा सम  है  पूजा| साथी मम ना दूजा|| साजूँ सुख मैं संगी| पाऊँ जग ना तंगी|| तारा जब से आयी| गंगा  लहरें  छायी|| शक्ति वह  है नारी| भक्तिमय है भारी|| राही  उसको  मानूँ| सारी प्रतिभा जानूँ|| बंशी धुन सी बातें| भाएँ सजनी रातें|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

कवि की महिमा

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 बस माहौल में रहकर, देख सुनकर, मैं भी अपनी भाषा को दो साल की उम्र से ही  बोलना सिख गया, और विद्यालय में गुरुओं एवं परिवारिक शिक्षा के द्वारा अपनी भाषा को लिखना भी सीख लिया| कुछ दिन में अन्य विषयों एवं शब्द संकेतों से पाला पड़ा, बस सीखते - सीखते यह महसूस हुआ कि शब्द गंगा, विषय सरिता एवं भाषा सिन्धु में हम डूबते जा रहे हैं, पता नही इसका अंत भी है या नही, पढ़ते- सीखते, डुबकी लगाते 25 वर्ष बीत गए, फिर शुरु हुआ मन, आत्मा एवं हृदय की अन्तर्वेदना को सुनकर उसमें अपने सकारात्मक, सार्थक विचारों को जोड़कर अभिव्यक्त करने का एक शानदार माध्यम जिसे हम कविता के माध्यम से जानते हैं|            शायद किसी ने सच ही कहा कि कविता में शब्दों को पिरोकर सौन्दर्य पैदा करने की कला केवल कवि के पास है और यह गुन भी ईश्वरीय वरदान है, क्योंकि अनुभवी भाषायी ज्ञान एक साहित्यकार की नींव हो सकता है, परन्तु सामाजिक गतिविधियों के प्रति संवेदनशीलता को उद्वेलित होकर शब्द रूप दे देना एवं मानवीय संवेदनाओं के अन्तः स्थल को काव्य में रच देना, एक नैसर्गिक ईश्वरीय वरदान है| कवि के भावों और वेदनाओं को समझकर

रुचि छंद (साहिल)

🌺 रुचि छंद 🌺 विधान~ [ तगण भगण सगण जगण गुरु ] (221  211  112   121   2) 13 वर्ण, 4 चरण, (यति 4-9) [दो-दो चरण समतुकांत] है  छन्द की, गुन महिमा बड़ी यहाँ| है ज्ञान की, अनुपम सी कड़ी यहाँ|| मानो   यही, गुरुवर  हैं  बड़े  यहाँ| पाने कृपा , प्रियवर भी खड़े यहाँ|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

कर्तव्य /भावना/गज़ल़ (साहिल/सरस)

       कर्तव्य बड़े बुजुर्गों ने सिखाया, गुरुओं ने भी याद कराया, कठिन डगर पर भटक न जाना अपने कर्तव्यों को निभाना |  सदा प्रज्जवलित कर्मों से, आदर्शों  के मर्मो  से, सत्य सनातन धर्मो से, अपने कर्तव्यों को निभाना |  सदा प्रेम से  जीते जाना, सुख- दुख तो है आना जाना, आशा का ही  दीप जलाना, अपने कर्तव्यों को निभाना | ©  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल         गज़ल 1222 1222 1222 हवाओं ने कहा है ये घुटन कैसी| कटे उस पेंड़ से पूछो चुभन कैसी|| ख़ता थी उन ख़तो की जो लिखे तुमने| जवाबी ख़त जलाने में जलन कैसी|| समझ इतनी कि खुद को नासमझ कहती| मिलन की आग में जलती अगन कैसी|| नहाना झील में उसका क़यामत था| नज़र में हुस्न की मदिरा मगन कैसी|| कमल की उस कली में जब भरे खुशबू | महकती फिर जवानी आदतन कैसी|| सरस की प्यास कोई आ बढ़ा जाए| चली है आज देखो तो पवन कैसी|| 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 ©दिलीप कुमार पाठक "सरस" 🙏🍹👫💏❤🍦💐🌺🍫🎂🥧 साथ - साथ साधना के सात हुए वर्ष हैं| प्रीत भरी भावना का हर्ष ही हर्ष है| संग संग हम चले, मधुर रंग रच गए, सब दुख दर्द तो, स्नेह में बह गए| दिल के अर

भक्ति छन्द/भुजंगी छन्द ('साहिल')

       भुजंगी छंद विधान~ [यगण यगण यगण+लघु गुरु] ( 122  122 122 12 11वर्ण,,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] मुझे भी  सहारा दिखेगा  सदा| वही प्यार माँ का मिलेगा सदा|| बसी  हो   हमारे हिया में सदा| दिखे दिव्य बाती दिया में सदा|| धरा धीर सी धन्य माता मिली| जपू माँ दया दान दाता मिली|| सहे  पीर  सारे   कुहासा घना| उसी मौसमों में पला मैं बना|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' सरस सरल साहिल सजे, सुंदर सुख सम्मान | आस भगत अरु सोम से, प्रीत  बढ़ाते गान||    प्रीत रीत है प्रेम की, प्रीत  दिलाती जीत | प्रीत बिना काया लगे, बिन साजों का गीत||  © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'           🙏जय जय 🙏     भक्ति छंद 221  122  2 7 वर्ण  4 चरण फेरे  हम  ना  लेगें| कोई दुख ना देगें|| शादी बिन वो मेरी| ना  चाहूँ पल देरी|| तारा सम  है  पूजा| साथी मम ना दूजा|| साजूँ सुख मैं संगी| पाऊँ जग ना तंगी|| तारा जब से आयी| गंगा  लहरें  छायी|| शक्ति वह  है नारी| भक्तिमय है भारी|| राही  उसको  मानूँ| सारी प्रतिभा जानूँ|| बंशी धुन सी बातें| भाएँ सजनी  रातें|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल

तपन (साहिल)

        तपन तपन न बढ़ाओ सजन, जेठ  की  दुपहरी में, अगन न लगाओ बलम, जल्दी आओ सहरी में| रोज रोज याद तेरी, मुझको सताती है, सूरज की गर्मी सी, बढ़ती ही जाती है| रात के  सुकून  में, मिलन याद आता है, सुबह पुनः विरहा में, सूरज चढ़ जाता है| तन की तपन को, मैं सह तो लेती हूँ, रूह की तपन तो, सह भी न पाती हूँ| होती  न  रात  तो, ये दिन भी न होता, मिलकर सनम तू, दूर  यूँ  न   होता| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

गज़ल़ (साहिल) इंतहा हो गयी

212  212   212   212        🌹  गज़ल़  🌹 भागते - भागते  इंतहा हो गयी| देखते देखते वो जुदा  हो  गयी| सोचता हूँ उसी की वफा ही मिले| चाँदनी चाहतों पे  फिद़ा हो  गयी| माँगता हूँ खुदा से उसे रात दिन| मन्नतों से शिला भी बला हो गयी| कामिनी  तू बनी  रागिनी तू बनी| जिन्दगी की रवानी सजा हो गयी|        रात अब थम गयी  दिलरुबा आ गयी| संग साहिल जवानी  जँवा  हो गयी| © डॉ० राहुल शुक्ल साहिल प्रेम प्यार की भाषा लिखकर, नैना स्नेह बढ़ाते हैं| मधुर मधुर सी आशा लिखकर, प्रीतम प्रीत पढ़ाते हैं| प्रियतम तेरे  अरज  सुनेगें, जल्दी राह चुनेगें| हृदय मीत की बात समझकर, तब तक राह तकेगें| डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' 🌺🌸🍁🌷💐👌👌💐🌷🍁🌺

चम्पकमाला छंद ('साहिल')

         🌷 चम्पकमाला छंद 🌷 विधान~ [भगण मगण सगण+गुरु] ( 211  222 112  2 ) 10 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत] मोद मनाओ  गीत सुनाओ| प्रीत जगाओ  रीत बनाओ|| चंचल  तारा  मंद  किनारा| तू जग  में  है  प्रेम  सहारा|| मोहक प्यारी  सूरत न्यारी| लोचन  सोहे  सुंदर  नारी|| पावन  गंगा  सा  तन तेरा| जीवन  सारा  रैन  बसेरा|| सोहत है  प्यारी धुन धारा| पायल  से बाजै  पग तारा|| भाल   सजाऊँ  चंदन  तेरे| ईश  पुकारूँ  नित्य  सवेरे|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

नन्दिनी पुस्तक विमोचन पर गीत (सरस जी)

जय जय हिन्दी विशेषांक ~नंदिनी काव्य संग्रह विमोचन कार्यक्रम को समर्पित साभार एक गीत |🌹🙏🏻🌹 सुमित पियूष का झरना झरता, करो आचमन आ मिलकर| साँझ अँधेरी हो आई है| आजा प्रियवर अब घर पर|| भोरकाल में मिलन हुआ था| मधुर मिलन का खिला कमल|| पुलकित होकर प्रेमभावना| बनी प्यार की एक गजल|| बृजवासी गुजराती पुट को| पाकर पावन हृदयनगर|| आजा प्रियवर ~~~~ अलबेला साहिल सुमित साथ| घर~प्रांगण में रखे कदम|| खुशियों के सब वरददेवता| भगत नेह औषधि अनुपम|| सरल चरण बन जीवन के| गाओ साथी जीभर कर|| आजा प्रियवर ~~~~ शशि रंजन साथ मिला मुझको| फिर प्रवीण आनेह मिला|| तारा के घर में आकर तो| जैसे हिन्दुस्तान खिला|| भारत हंस हुआ संघर्षी | देश प्रेम देखो जीकर|| आजा प्रियवर ~~~ सब कुछ सम्भव है इस जग में| पहले थोड़ी प्यास भरो|| अधरों पर नित मुस्कान मिले| ऐसा जरा प्रयास करो|| आस वास विश्वास यशस्वी| सरस नंदिनी पय पीकर|| आजा प्रियवर ~~~~ कहता मन हर रोज यजन हो| सोम दिव्य शीतल मन हो || तिलक लगायें हम सब जिसका| मधुर भावना चंदन हो| तुम ही हो दिनमान सुनहरे| बनो रश्मि आलोक प्रखर|| आजा प्रियवर ~~~

भालचन्द्र छन्द (साहिल/सोम/ सरस)

         🌹भालचंद्र छन्द 🌹 विधान~~~ जगण रगण जगण रगण जगण + गुरु लघु १२१,२१२,१२१,२१२,१२१,२१ सुनो पुकार सारथी  सुवास आस हो विकास| मिले सुभाष कामिनी सुप्रीत रास मीत प्यास|| सजे  सुहास  रागिनी  बजे सितार तार- तार| हिया  सुमेर  चाहता  करूँ  सुधार बार- बार|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'           भालचंद्र छंद [जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु] (121  212 121  212  121 21) 17 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत। चलो  सुजान  राह  में   सदैव   कष्ट  हैं अपार। थको  नही  करो  प्रयत्न  राह खोज बार बार।। बढ़ो   सदा  उमंग   से  नवीन  साधना प्रयास। छिपा समीप लक्ष्य है,निहार"सोम"आस पास।।                                   ~शैलेन्द्र खरे"सोम"        🔶भालचंद्र छन्द🔶 विधान~~~ जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु १२१,२१२,१२१,२१२,१२१,२१ सजा वितान सा विधान भालचन्द्र छंद गान| कृपा निधान सोम ओम दिव्यदृष्टि के समान || बने प्रमाण भावसाम्य शब्द ज्ञान पाग पाग| निखार  को निहार नैन हो सदा  नवीन राग||  🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 ©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मेरे मन का चैन

        मेरे मन को चैन सभी कष्ट कट जाए तो मेरे मन को चैन मिले| सदाचार आ जाए तो मेरे मन को चैन मिले| नारी का सम्मान करो शुद्ध आचरण हो ऐसा, अनाचार मिट जाए तो मेरे मन को चैन मिले| असली आजादी आए तो मेरे मन को चैन मिले| शहीदों को मान मिले तो मेरे मन को चैन मिले| दहशत और भय में जीना अब दुस्वार हुआ| आतंकी की घटे फौज तो मेरे मन को चैन मिले| मधुर प्रीत की बात से मेरे मन को चैन मिले| मिलन भरी सौगातों से मेरे मन को चैन मिले| जिसको चाहूँ ख्वाबों में उसको ही मैं पाऊँ, मोहब्बत की बरसातों से मेरे मन को चैन मिले| © डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

परिचय ('साहिल')

🌹  परिचय   🌹 जन से जन का हो परिचय, जीवन पथ पर सदा विजय| मन  से मन  का हो परिचय, प्रभु का प्रतिपल करूँ विनय| मधुर  भावना  जग  जाए, नेह का अमृत मिल जाए| सरस  साधना  ममता  है, सुखद कामना  समता है| सफल प्यार के परिचय से, जीवन  जाना  परिणय से| दिल में जब से तुम आयी, हर  ऋतु में बरखा छायी| हिय की  प्यास बुझाने को, सावन का गीत सुनाने को| परिचय साज सिखाता है, प्रियतम  साथ सुहाता है| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

भुजंगी छन्द/ माँ (साहिल)

🌹 *भुजंगी छंद* 🌹 विधान~ [यगण यगण यगण+लघु गुरु] ( 122  122 122 12 11वर्ण,,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] मुझे भी  सहारा दिखेगा  सदा| वही प्यार माँ का मिलेगा सदा|| बसी  हो   हमारे हिया में सदा| दिखे दिव्य बाती दिया में सदा|| धरा धीर सी धन्य माता मिली| जपू माँ दया दान दाता मिली|| सहे  पीर  सारे   कुहासा घना| उसी मौसमों में पला मैं बना|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

शिक्षा का महत्व

देश की शिक्षा व्यवस्था यही है, आजकल जो बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, उसका कोई महत्व नहीं समझ में आता| शिक्षा रोजगारपरक भी नहीं है, क्या पढ़ा रहे हैं, क्यों पढ़ा रहे हैं ?  उससे बच्चे के अंदर नैतिकता संस्कार, भारतीय संस्कृति को बढ़ाने हेतु, व्यवहार एवं शैक्षिक परिवर्तन कुछ भी विकसित नहीं हो पा रहा है, वाकई में शिक्षा व्यवस्था अत्यंत बिगड़ चुकी है|                    यह बहुत ही सोचनीय विषय है, हम सब को खुलकर आगे आना होगा| शिक्षा व्यवस्था में बदलाव हेतु सभी कदमों की ओर ध्यान देना होगा और यदि जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करना होगा |  हमारे बच्चों के संस्कार नैतिकता सामाजिक व्यवहार एवं रहन- सहन बोलचाल आदि सभी चीजों में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है, नकरात्मक व्यवहार देखने को मिल रहा है जो कि हमारे बच्चों परिवार एवं समाज के लिए अत्यंत हानिकारक है| रोजगारपरक, आध्यात्मिक, वैदिक यौगिक एवं संस्कार पूर्ण शिक्षा का समावेश करना होगा तभी बच्चों युवाओं एवं देश का उत्थान संभव है| *वर्तमान शिक्षा पद्धति में सकारात्मक सार्थक एवं संस्कार पूर्ण परिवर्तन की विशेष आवश्यकता है|* शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षा  व्यवस्

चंचल मन (लोकगीत) दिलीप कुमार पाठक सरस जी

चंचल मन लोकगीत हमकौ दइ दे थोड़ो प्यार|~2 अब तू नाहीं कर इन्कार|| हमकौ दइ दे थोड़ो प्यार|~2    साहिल दूर खड़ो मुस्कावत| चंचल उर्मि देख ललचावत|| फैलो केतो है विस्तार| मेरी नैया है मझधार || हमकौ दइ दे थोड़ो प्यार|~2 कहीं किसी ने नाम पुकारा| आस पास ही है वह तारा|| मन में श्रद्धा जगी अपार| होता तुझसे ही उजियार|| हमकौ दइ दे थोड़ो प्यार|~2   सरस-सरल-सी प्रीत हमारी| फूली सुकुमारी फुलवारी|| आ जा गन्धिल हुई बयार| अब तो डाल गले में हार|| हमकौ दइ दे थोड़ो प्यार||~2 खेल खिलौने चंचल मन के| सुख दुख तो साथी जीवन के|| मेरा तू ही तो संसार| जीवन जीना है दिन चार|| हमकौ दइ दे थोड़ो प्यार||~2 ©दिलीप कुमार पाठक सरस

वीना (साहिल)

🌸🌻 वीना 🌻🌸 मधुर वचन की धार है वीना, जीवन की  रसधार है  वीना, तारों सी हो  चमक चाँदनी, मुद गीतों का सार है वीना | सरस रागिनी प्यार है वीना, लहर प्रीत की नार है वीना, वीना  के  तारों  से  झंकृत, अतुल दिव्य अवतार है वीना | मनभावन सा गीत है वीना, नारी शक्ति संगीत  है वीना, नारी तो है जग  की जननी, चहुँ ओर स्वीकार है वीना | सरल साधना सुखमय वीना, अभिपूरित हो मधुरिम वीना, ममता अरु वात्सल्य विनय, सहकारित सम्मान है वीना | समता का विचार है  वीना, सरगम की झंकार है वीना, वीना  से  गुंजित अन्तर्मन, प्यार भरा  संसार है वीना | © डॉ० राहुल शुक्ल  'साहिल'