∆ सुमति छंद ∆ विधान - नगण रगण नगण यगण (111 212 111 122) 2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण मधुर रागिनी सुर लय गाए| करुण वेदना दुख तम जाए|| पहर बीतते तुम - बिन कैसे| गहन रात की करवट जैसे|| सकल नेह की सुखमय काया| नयन प्रेम ही निशदिन पाया|| मुदित हो गया तन- मन सारा| चमक यामिनी झिल-मिल तारा|| सुभग मोहिनी अब तुम आओ| नवल प्रीत की अलख जगाओ|| मिलन मीत का मधुरिम लागे| सुखद नींद से प्रियतम जागे|| सरस भावना प्रियतम प्यारी| सरल साधना सुखमय नारी|| विरह धीर की कब तक ताकूँ| कबहुँ तो मिलो इत उत झाकूँ|| मिलन कामना तन-मन प्यासा| सकल स्नेह से झरत कुहासा|| शुभम प्रेम है शरण सहारा| चमक चाँदनी मधुरिम तारा|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ