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Showing posts from April, 2017

भगत जी की श्रेष्ठ व्याकरणशाला

🙏 जय-जय व्याकरण वह शास्त्र है   , जिसके द्वारा भाषा का शुद्ध , सर्वमान्य और मानक रूप स्पष्ट होता है| शिष्ट और सुशिक्षित लोगों द्वारा निश्चित, प्रयुक्त व व्याकरण सम्मत रूप ; जो कि तर्क संगत हो, को ही भाषा का मानक रूप कहा जाता है| सीखने के बाद  भाषा पर अधिकार इसी शास्त्र से हो पाता है | व्याकरण का ज्ञान प्राप्त कर कोई भी व्यक्ति भाषा का उचित व प्रभावशाली प्रयोग कर सकता है | भाषा की परिभाषा देते समय यह कहा जाता है कि   भाषा एक व्यवस्था है | जहाँ कोई व्यवस्था होगी, वहाँ नियम भी होंगे और भाषिक व्यवस्था के नियम ही व्याकरण के नाम से जाने जाते हैं | व्याकरण=   वि  +     आ     +     करण                   |            |                 |               विशेष   स्वीकारना       करना कहने का अर्थ है कि जो व्यवस्था विशेष (नियमीकरण) होने से स्वीकृत (भाषा द्वारा) है, वही व्याकरण है |  व्याकरण का एक प्रयोजन यह भी है कि वह प्रचलित भाषा का सर्वांगीण  विश्लेषण कर नियमीकरण की प्रक्रिया से समाज  द्वारा ग्राह्य या सही रुपों का प्रकट करे | व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है । वह शब्

रथोद्धता छन्द

      विधा ◆रथोद्धता छंद◆ विधान~ [रगण नगण रगण+लघु गुरु] (212 111 212  12 11वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] नेह प्रीत नयना निखार लो। प्रेम मीत सजना सँवार लो।। गीत ताल तबला धमाल हो। गान सोम महिमा कमाल हो।। ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

विसर्ग संधि (नियम 1/2/3/4/5/6/7/8)

   विसर्ग सन्धि ~ अर्थात् ~       : + स्वर = विसर्ग संधि       : + व्यंजन = विसर्ग संधि (1)     पहला नियम ~ विसर्ग पूर्व में स्वर अ हो पीछे य ,र ,व और  ह  हो, या वर्ण वर्ग का 3 से 5 हो तो विसर्ग युत अ  का ओ हो।   उदाहरण देंखे ~ मन: +रथ    अ:+र      | अ: को ओ तो  मनोरथ हुआ। अधोहस्ताक्षर = अधः + हस्ताक्षर यशोदा = यशः + दा  मनोभाव = मनः + भाव सरोरूह = सरः + रूह पयोहारी = पयः + हारी रजोगुण =  रजः+ गुण तिरोभाव = तिरः + भाव मनोयोग = मनः + योग वयोवृद्ध = वयः + वृद्ध  धनोमान = धनः + मान  पुरोवाच = पुरः + वाच कुछ संधि-पद ~ १. मन:+ रोग = मनोरोग २. सत:+ गुण = सतोगुण ३. धन:+ धान = धनोधान ४. यश:+ धरा = यशोधरा ५. पुर:+ हित = पुरोहित      (2)      दूसरा नियम ~ विसर्ग पूर्व में स्वर अ हो, पीछे स्वर दूजा आ जाये | विसर्ग लुप्त हो पद मिल जाते, ज्ञानी ऐसा बतलाये || अर्थात~~~ अ:+अन्य स्वर = विसर्ग का लोप उदाहरण ~ तप: + उत्तम = तपउत्तम १. मन:+उच्छेद= मनउच्छेद २. तप:+आधान=तपआधान ३. पुर:+उवाच=पुरउवाच विच्छेद करें~ १. रजआधार= रजः + आधार २. सर्वउत्तम= सर्वः + उत्तम ३.

आशीष पाण्डेय जिद्दी जी की कवितायें

मातृभूमि से प्रेम --------------------- प्रेम हमारा मातृभूमि से, अटल अमर और निश्छल है। जननी भी कहती है बेटा, माटी से ही निज बल है। उड़े धूल जो महके अंबर, मिट्टी में वो खुशबू है। प्रेम भाव से लेप लगाकर, हो शीतल मन वो जादू है। बागों में जो कोयल बोले, आनंदविभोर मन हो जाए। देख धरा की हरियाली, मन पंखुड़ियों सा खिल जाए। देख लहलहाना फसलों का, मन मोहित हो मुस्काया है, चले पवन जो पुरवाई मन, किसानों का महकाया है। प्रेम घटा का देख मयूरा, नृत्य करत लहराया है। प्रेम किया जो कलियों से, भवँरों ने गुंजन गाया है। है प्रेम राग जहाँ जीवन के, सात सुरों में पिरोया है। याद धरा जब करे गगन को, प्रेम भाव में रोया है। आशीष पाण्डेय जिद्दी पिता एक नाता ही नहीं ------------------------------- पिता एक नाता ही नहीं हैं पिता एक वरदान हैं/ संस्कार देते हैं पुत्र को देते स्वर्णिम ज्ञान हैं/ सत्य नेक सद्मार्ग के पथ पर हमको पिता चलाते हैं/ देशधर्म कुल मर्यादा का ' हमको पाठ पढ़ाते हैं/ पिता देवता तुल्य हमारे पिता वेद की खान हैं/ पिता एक नाता ही नहीं हैं पिता एक वरदान हैं/ पित

विसर्ग संधि

   विसर्ग सन्धि ~ अर्थात् ~       : + स्वर = विसर्ग संधि       : + व्यंजन = विसर्ग संधि पहला नियम ~ विसर्ग पूर्व में स्वर अ हो पीछे य ,र ,व और  ह  हो, या वर्ण वर्ग का 3 से 5 हो तो विसर्ग युत अ  का ओ हो।  उदाहरण देंखे ~ मन: +रथ    अ:+र      | अ: को ओ तो  मनोरथ हुआ। और उदाहरण~ अधोहस्ताक्षर = अधः + हस्ताक्षर यशोदा = यशः + दा  मनोभाव = मनः + भाव सरोरूह = सरः + रूह पयोहारी = पयः + हारी रजोगुण =  रजः+ गुण तिरोभाव = तिरः + भाव मनोयोग = मनः + योग वयोवृद्ध = वयः + वृद्ध  धनोमान = धनः + मान  पुरोवाच = पुरः + वाच कुछ संधि-पद ~ १. मन:+ रोग = मनोरोग २. सत:+ गुण = सतोगुण ३. धन:+ धान = धनोधान ४. यश:+ धरा = यशोधरा ५. पुर:+ हित = पुरोहित       जय जय

हल् ष की संधि/ व्यंजन की अंतिम संधि/ विसर्ग संधि

         ष की संधि    पहला नियम ~ परि के पीछे क आवे तो, चमत्कार फिर से होता ,   दोनों शब्द यथावत रहते, बीच में हल् षटकोण होता।   अर्थात् ~ परि + क = बीच में  हल् षटकोण ष का आगम होगा।   परि + क = क से पूर्व हल *ष्* षट्कोण जैसे~ परि+कार      |     ष् परिष्कार उदाहरण ~ संधि-विच्छेद करें~ १. परिष्करण = परि + करण २. परिष्कारक = परि + कारक ३. परिष्कृति = परि + कृति संधि-पद,बनाएँ~~~ १. परि + कार्य = परिष्कार्य २. परि + काम = परिष्काम ३. परि + कारित= परिष्कारित      दूसरा नियम ~  हल षट्कोण के ष् के पीछे, त/थ/न जो आ जावे | त/थ/न फिर षट्कोण ष् संग, ष्ट/ष्ठ/ष्ण हो जावे ||  अर्थात~       ष् + त = ष्ट       ष् + थ = ष्ठ       ष् + न = ष्ण उदाहरण ~ संधि विच्छेद करें~ १. तृष्णा = तृष् + ना २. पृष्ठ = पृष् + थ ३. उत्कृष्ट = उत्कृष् + त संधि-पद बनाएँ~ १. उत्कृष् + थ = उत्कृष्ठ २. पृष् + त = पृष्ट ३. सहिष्+ नु = सहिष्णु        🙏🏻जय जय 🙏🏻          व्यंजन संधि का अंतिम नियम इ/उ/ए स्वरान्त का योग जो  स्थ/स्न से हो जाय | स्थ का ष्ठ हो जाता अरु, स्न का ष्ण

कविराज तरुण शुभ नमन

    🙏🏼--० शुभ नमन ०--🙏🏼 मिले हालात जैसे भी , कटे ये रात कैसे भी । चलो हम भी जरा समझें , मोहब्बत राज वैसे भी ।। सुबह की रौशनी के संग लिखें हम गीत मन भावन । तुम्हारे प्यार की गीता , करे फिर आज अब पावन ।। कभी काली सियाही सी , कभी कड़वी दवाई सी । मिली थी रात रातों में बिन तारों के बिताई थी ।। मगर अब चाँद गायब है, सूरज की छटा अनुपम । उजाला ही उजाला है , चहक चिड़ियों की है सरगम ।। कविराज तरुण 'सक्षम' साहित्य संगम संस्थान

भगत जी के दोहे

रहा लिखा यश भगत के, संगम तरुवर छाँव | ज्ञानशिलायें   है   यहाँ, गुणियों का यह गाँव || कौन मूढ़ अरु विज्ञ जग, सब माया बिधि हाथ | समय  रंक  भूपति   करे, भूपति   रंक  अनाथ || ज्ञान  जहाँ  तहँ  मान है, मान वहीं  सुख सार | ज्ञान मान सुख साथ ही, जगत जलन आधार || स्लोगन लिखते कलमवर, विजय दिलावनहार | जीत   भाजपा   ही   रहे, कर लो जय जयकार || 🙏 भगत

छाया सक्सेना प्रभु जी को साहित्यमेध के विमोचन पर हार्दिक बधाई

आ•  छाया सक्सेना प्रभु दीदी, आप को हृदयतल से हार्दिक बधाई, सर्वदा सहज, सरल, सार्थक एवं विनम्र भावों से पिरोये गये आपके शब्द शानदार अद्वितीय सृजन का निर्माण करते हैं,सभी विधाओ में आप की बहुत अच्छी पकड़ है। आप बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। आपके साम्यवादी एवं सामनजस्यपूर्ण दृष्टिकोण से सम्पूर्ण साहित्य संगम परिवार प्रभावित है। आपका व्यक्तित्व अन्य सभी महिलाओं के लिए सकल प्रेरणा स्रोत है। आपकी रचनायें हमेशा आध्यात्मिक ओज लिये होती है, जिससे आपके आत्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक ज्ञान का परिचय मिलता है। सभी जगह आपकी उपस्थित से स्नेह व सक्रियता  की  छाया का अहसास होता है। ईश्वर अनुदान आप पर सदा बरसते रहने की अनुकम्पा के साथ - साथ आपके हमेशा सुखमय जीवन की कामना के साथ आपका अकिंचन अनुज।           🙏🏻  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल साहित्यमेध की सारी रचनाएँ साहित्य संगम की ही देन हैं, आप सबके स्नेह से ही प्रोत्साहन मिलता है, और सृजन करने की प्रेरणा। आप ऐसा बिलकुल न सोचे कि कल बधाई नहीं दे पाये, यहाँ सभी एक दूसरे के स्नेह से भली भांति परिचित हैं, कभी किसी बात पे मतभेद हो वो अलग बात है । आप की व का

संधि के 6 (छह) आवश्यक तथ्य

सन्धि के 6 आवश्यक तथ्य (1)  पहला तथ्य  -   दो वर्णो के मेल से संधि बनती है। ( 2)  दूसरा तथ्य  -  हर संधि का उदाहरण स्वतः समास का उदाहरण होता है पर समास का उदाहरण संधि का उदाहरण नही होता। (3) तीसरा तथ्य -       संधि में एक स्थान पर एक ही संधि नियम लागू होगा।पहली बार जिस नियम से संधि हुई है वही मान्य है। भले फिर से सन्धि होती हो द्वितीय नियम मान्य नही हैं। (4)  चौथा तथ्य -   किसी भी शब्द का सन्धि विच्छेद करते समय उसे उस स्थान से तोड़ा जायेगा जहाँ से दोनों शब्दों का सहज सार्थक खण्ड हो जाता हो। चौथे तथ्य का विस्तार~ १. पहला प्रयास ~ सहज व सार्थक खण्ड हो ही। २. दूसरा प्रयास ~ पहले खंड का अर्थ प्राप्त हो जाए + दूसरा खंड निरर्थक हो तो भी उसे प्रत्यय मान कर संधि मान लेंगें। ३. तीसरा व अंतिम प्रयास~ दोनों खंड निरर्थक ही हो रहें हो, परन्तु किसी नियम से सार्थक शब्द बनता हो तो वहाँ संधि मान्य होगी | 5) पाचँवा तथ्य - किसी एक सन्धि पद में एक से अधिक स्थान  पर भी सन्धि विच्छेद हो सकते है।  वो तभी माने जायेगे जब एक ही सन्धि नियम से सभी सन्धि विच्छेद किये गये हो, अलग नियम नही