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Showing posts from March, 2017

सुप्रभात

💐सुप्रभात💐                जय श्री कृष्ण दुख  में जो शुख पाना है, लो  प्रेरणा श्री  राम की। सहन सीलता क्या होती, तुम्हे  सिखाती जानकी।        जय श्री कृष्ण       इन्दु शर्मा तिनसुकिया आसाम

धनमयूर और हलमुखी छन्द

घनमयूर छंद 111 111 211 112 212 1 2 नवल मिलन की, मधुवन है  तू,मिली जुली।  हर पल मन की,  हलचल है  तू, नपी  तुली ।  सतगुण रवि की,विकिरण है तू, घुली मिली। सरल प्रखर सी,  नटखट है  तू, धुली खिली।।       डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल ◆हलमुखी छंद◆ विधान~[ रगण नगण सगण] (212  111  112 ) 9वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] छंद आज सब रचिये। नेह मोद मन नचिये।। भाव प्रेम मन कहिये। नंद धाम सब रहिये।। लोभ क्षोभ दुख हरिये। नेक राह  पग धरिये।। गीत  गान गुन भजिये। क्रोध काम सब तजिये।। तीन संधि रस कविता । देत ओज सुख सविता।। संग संग सब  बढ़ते । नित्य प्रेम पथ गढ़ते।।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

पृथ्वी संरक्षण

🌺  पृथ्वी संरक्षण 🌺   ☘🌳🌴🌿🌲🌱🎋 बहुत ही गम्भीर विषय है। पृथ्वी संरक्षण तो समझ में नही आया केवल ये समझ आया कि  हम जिस धरती पर रहते हैं, जिसकी जलवायु में रहते हैं, जिस प्रकृति के उपहार स्वरूप अनुदानों का उपयोग करते हैं, पेड़ पौधों और वनों से प्राण वायु एवं भोजन प्राप्त करते हैं, सुखद शीतल हवा का आनन्द लेते हैं और धरती माता के दैविक संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं। इसके बदले में हम प्रकृति को धरती माता को प्रदूषण  देते है, पेड़ - पौधे काटकर मकान इमारते बनाते हैं, गाडियों से धुयें का प्रदूषण फैलाते हैं। वन सम्पदा को हानि से नही बचा पाते हैं पहाड़ों को काटकर रास्ते और भवन बनाते हैं। नदियों के जल कटाव को नही रोक पाते हैं, मृदा संरक्षण की ओर नही मन लगाते हैं, अच्छी फसल खाद और कीटनाशकों से बनाते हैं।मृदा के खनिज को बचा नही पाते हैं, कूड़ा, कचरा, सीवेज, गन्दा पानी, आदि बहुत कुछ पावन नदियों में और भूमि की तलछट में मिलाते हैं, धरती को गन्दा बनाते हैं, जीवों को मारते हैं और उर्वरा शक्ति को घटाते हैं। हमें तो समझ में नही आता कि हम फिर कैसे धरती को माता कहते हैं। प्रकृति और धरती के संसाधनों

समय बड़ा बलवान

     समय बड़ा बलवान सब कुछ खो कर मिल जाता है, पर समय नही फिर आता है। हर क्षण की कीमत समझो, तन मन में सेहत भर लो। कर्म सकल सफल कर लो, हर कण में निष्ठा भर लो।   समय बड़ा अनमोल है, ऋषियों के अनुपम बोल हैं। जो जग में हमने पाया है, समय ने ही सिखाया है। समय न  घटता बढ़ता है, जीवन सतत ही चलता है। बुरे और दुखद लम्हों का, समय बीत ही जाता है। अन्धकार को रोज मिटाने, अरुण समय पर आता है। दिन की थकान मिटाता है। जब चाँद रात को आता है। दुख के बादल लाता है, समय बदल भी जाता है। बलवान समय को कहते हैं, सबके दिल में प्रभु रहते हैं। मंजिल सफल बनाता है, जो श्रम में समय लगाता है। जब कठिनाई में तंग हाथ हो, सच्चे साथी का साथ हो। समय भयंकर महाकाल है, हर प्राणी की कर्म चाल है। रोटी धन की सतत प्यास है, समय के आगे सभी दास है।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

सवेरा और अहसास

    🌷 सवेरा 🌷 रोज सवेरा आता है, नव आशायें लाता है। सूरज की नव किरणों से, मन रोशन हो जाता है। गंगा की पावन धारा, तन को  मधुर बनाती है। नूतन प्रकाश की आभा, दिल में लहर उठाती है। फूलों पर भौरा गुंजन, सुर संचार कराता है। गीत सृजन का गाने से, वन उपवन बन जाता है । पंछी के कोलाहल से, दिल झंकृत हो जाता है। उम्मीदों का एक दीपक, रोज प्रभात जलाता है। रोज सवेरा आता है, नव आशायें लाता है। मीत मिलन के रागों से, जीवन सुर बन जाता है।  ✍  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल          🌺🌹  अहसास🌹🌺 प्यार दो दिल के अ हसास, का गीत है, प्यार चाहत का सच्चा, मनमीत है, जिसको चहो वही, मिल जाये अगर, प्यार का अहसास ही, मधुर संगीत है। उनके अ हसास से दिल, हुआ है मुदा, उनको होने न दूँगा, मैं खुद से जुदा, ईश्क की बस तमन्ना है, एहसास है, प्यार की आस से मन, हुआ है खुदा। प्यार में मिलन भी, एक अ हसास है, प्यार में जतन भी, एक अ हसास है, इस खुद़ा की नियाम़त, पे चलते रहे, खूबसूरत चमन भी, एक अ हसास है। टूटे दिल को मिलाना भी, अ हसास है, तन मन को मिलाना भी, अ हसास है, रुक सी जाती है, याद में ज़िन्

होली

🌺💐🌺💐🌺💐🌺💐              "होली" रंगो का त्योहार भी मनाये,   गुझिया मिठाई भी  खाये,  रंग भरा हो सुखमय जीवन, रंगो से तन मन जीवन सजाये।  गुलाल के रंग से मन सज जायेगा। प्यार मिले तो जीवन सज जायेगा। हँसी ठिठोली होली और हमजोली।  होली में यारों का  तन रंग जायेगा।  नशा आज रंग का चढ़ रहा है। मजा तेरे संग का आ रहा है। आज मनाओ रंगो  की होली। होली का फुहार जमके चढ़ रहा है।  रंग  में  सब रंग गये, रंग के संग संग भये, रंगो का त्योहार होली, भंग मलंग मृदंग भये।     डाॅ• राहुल  शुक्ल साहिल की ओर से आप सभी को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाये।

हलमुखी छन्द

           ◆हलमुखी छंद◆ [रगण नगण सगण] (212  111  112 ) [9 वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत] छंद आज सब रचिये। नेह मोद मन नचिये।। भाव प्रेम मन कहिये। नंद धाम सब रहिये।। लोभ क्षोभ दुख हरिये। नेक राह  पग धरिये।। गीत  गान गुन भजिये। क्रोध काम सब तजिये।। तीन संधि रस कविता। ओज देत सुख सविता।। संग संग सब बढ़ते।। फूल थाल भर चढ़ते।।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

हलमुखी छन्द

♦ हलमुखी छन्द♦ (रगण+नगण+सगण, ९ वर्ण, ४ चरण, दो-दो चरण समतुकान्त) 🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱 गेह  आप  सच कहिये | जानि साँच  पग रहिये || साथ जानि गुरु बढ़िये | बात  ज्ञात  मग बढ़िये || आजु कौन हम कहऊँ | बात आप  सब गहऊँ || काम नाम बस जपना | दास  राम  रट  रखना || 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 ©भगत

मंजुभाषिणी छन्द

◆मंजुभाषिणी छंद◆ [ सगण जगण सगण जगण+गुरु] (112  121  112  121 2)13 वर्ण, 4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत मिटते जहान पर देवदूत हैं।  जननी पुकार सुनते सपूत हैं।।  प्रभु प्रेम से सुफल काज कीजिये। हित देश का वचन आज लीजिये।।     डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

समर्पण

समीक्षा माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी कल रात मेरे स्वप्न में आये बोले बेटा उभरते युवा साहित्यकार हो, कुछ भारत के प्रति समर्पण की, माँ भारती की गाथा पर कोई काव्य लिख दो, दिल बड़ा बेचैन है, देश के हित में सदा ही हम बिछाये अपने नैन है। मैं तो कर रहा हूँ पूरा जतन, क्या कहता है एक देशवासी का मन,       मेरा हृदय द्रवित हो उठा। मैनें अपना भाव लिख दिया। "श्री मोदी जी की करुण वेदना"          *समर्पण* (विधा ~ ताटंक छन्द) आज समर्पण की जननी का,    गीत सुनाने आया हूँ। आज समर्पण की गाथा को,    जीत बनाने आया हूँ। जहाँ देश पर मिटने वाले,   उस जननी का बेटा हूँ। जो अनाज से भूख मिटाते   उस किसान का बेटा हूँ। बहुत हुई है चोर बजारी,  सबक सिखाने आया हूँ। राष्ट्र प्रेम में जीवन अर्पित,   राह दिखाने आया हूँ। सहनशील धरती का साहस,   मैं बतलाने आया हूँ। कठिन राह पर चलते जाना,   साथ निभाने आया हूँ। इस भारत में धर्म समर्पण,   दीप जलाने आया हूँ। कौशल ज्ञान और विकास की    रीत बनाने आया हूँ। नर नारी और युवाओं का,   भाव जगाने आया हूँ। आज समर्पण की जननी का,  

पंकजवाटिका छन्द/एकावली छन्द

          पंकजवाटिका / एकावली छन्द  सोहत नयन निखारत सूरत। मोहक बदन निहारत मूरत।। चंदन सरस सुगंध बिखेरत। वंदन सकल महेश उकेरत।।   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

विशेष छन्दों के विधान

प्रिय मित्रों कुछ छंद विधान प्रस्तुत कर रहा हूँ,जिन्हें याद रखने में बड़ी आसानी होगी। 16 + 6 = 22 मात्रा का रास छंद, अंत 112 16 + 7 = 23 मात्रा का निश्चल छंद, अंत 21 16 + 9 = 25 मात्रा, गगनांगना छंद,अंत 212 16 +10 = 26 मात्रा का शंकर छंद, अंत 21 16 +10 = 26 मात्रा का विष्णुपद छंद, अंत 2 16 +11 = 27 मात्रा का सरसी छंद,अंत 21 16+12 = 28 मात्रा का सार छंद, अंत 22 16 +14 = 30 मात्रा का ताटंक छंद,अंत 222 16+14 = 30 मात्रा का कुकुभ छंद,अंत 22 16 +14 = 30 मात्रा,लावणी छंद,अंत स्वैच्छिक  16 +15 = 31 मात्रा का बीर/आल्ह छंद,अंत 21 16 +16 =32 मात्रा राधेश्यामी छंद              [ +को यति मानें]                           संकलन~शैलेन्द्र खरे"सोम" 🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏

आ• भगत जी के चन्दन पर दोहे

उपस्थिति मात्र🙏~ ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ *चन्दन\टीका\तिलक* विधा~दोहा 🌱🌱🌱🌱🌱 १. *चन्दन* सी महके सदा, पूत  भौम  की रेत | समरभूमि जाते सजा, हँस-हँस होते खेत || २. माथे का *चन्दन* बना, राखहुँ पग रज आप | तीनि रूप के सहज ही, मिट  जायेंगे  ताप || ३. मात-तात-गुरु ईश सब, पग रज *चन्दन* जानु | बल विक्रम गौरव मिले, कथन  बढ़न  यह  मानु || ४. *टीका* दाती माथ पर, हरती  माँ  सब पीड़ | वर मुद्रा कहती सदा, सुखद रहे सुत नीड़ || ५. *चंदन का टीका* लगा, बने भगत  अब लोग | मन   मैला  ही  रह  गया, क्यों कर मिटने सोक || ६. *टीका* सुन्दर है लगा, लहू   वीर  का  शीश | देखो देती भारती, लख-लख बहुत उशीश || ७. केसर का *टीका* सजा, करना शुभ तुम काज | नाम मान सम्मान बढ़े, सोहे   सतत   समाज || ८. गेंदे का  *टीका*  लगा, शीश  कलेजे  देख | मोहित हो संसार भी, चले नयन तव रेख || ९. *चन्दन* शीतल होत है, हरता आतप घाम | मस्तक अरु हिरदय रखो, क्रोध  रहेगा वाम || १०. *चन्दन* के लिपटे रहे, कहते भुजग कराल | तब भी विष व्यापे नहीं, शीतलता तिहुँ काल || ११. *टीका चन्दन* का  लगा, देवालय  से  आय | स्नान ध

आ• नित्यानंद पाण्डेय मधुर जी का व्यक्तित्व

श्री नित्यानंद पाण्डेय मधुर जी का व्यक्तित्व  क्षणिक सुख और लम्बे समय तक दुख मिलने वाले जीवन की डोर यदि कोई मन व भावनायें समझने वाला साथी थाम लें, तो जीवन पथ सुगम  हो जाता है।स्वभाव में जिसके स्नेह अपनत्व व लगाव हो, वही आज के युग में सच्चा साथी है, वरना कलियुग में लोगों के पास अपने लिए भी समय नही हैं, जाने क्या कमाने में लगे है लोग, सुख और पैसे के पीछे भगे जा रहे है। ऐसी कल्पनाओं के सागर में गोते लगाते हुए "साहित्य  संगम संस्थान" से जुड़ने का मौका मिला, जैसे साहित्यिक अभिरुचि को पंख लग गये, बहुत से स्नेहिल आत्मिक साहित्यकार साथी मिलें जिसमें से एक व्यक्तित्व सबसे प्रिय, सबसे अलग, सबसे मृदुभाषी, एवं स्नेहिल लगे जो सदैव दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं, अपना कार्य छोड़ कर दूसरों की  मदद करने वाला व्यक्ति कितना उम्दा होगा।     साहित्य संगम संस्थान में उनके ओजस्वी, तेज, सकल एवं मिलनसार व्यक्तित्व को देखते हुये परामर्शदाता / सलाहकार के पद पर सुशोभित किया गया जिसका उन्होंने बखूबी निर्वहन किया एवं कर रहे हैं। ऐसे अद्भुत  अद्वितीय एवं विलक्षण व्यक्तित्व का नाम श्री नित्यानं

मोटनक छन्द

  मोटनक छन्द ♦ (तगण+जगण+जगण+लघु+गुरु, ११ वर्ण, ४ चरण, दो-दो चरण समतुकान्त) 🌱🌱🌱🌱🌱 गाते हम  कीरति को मन में | माथे  कर  चाहत  जीवन में || पायें फल भाँतिक ही गुरु तै | दायें शुभ कारज भी  कुरु तै || 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿 ©भगत   विधा ◆मोटनक छंद◆ विधान~ [तगण जगण जगण+लघु गुरु] ( 221 121 121  12 11वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] हे मोहन माधव  श्याम लला। न्यारी सबसे सुखधाम कला।। सारी विषता छिन माहिं जरै। को जो पद पाकर नाहिं तरै।।             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"   विधा ◆मोटनक छंद◆            चन्दन ये चंदन लागत  सुंदर  है। माथे पर शीतल अंदर है। मानो शिव को वह शंकर है। माया जग का तम कंकर है। आओ सुखपूरित काम करें। सच्चे मन से प्रभु धाम भरें।। टीका महके जब भाल लगें। बाजे डमरू सुर ताल जगें।।   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

महाराणा प्रताप स्त्रोत

🍂🍂।।महाराणा प्रताप स्तोत्र। । 🍂 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 महाराणा श्रीरामपुत्रलववंशजे पन्द्रहसौचालीसईशवी है जन्मे सिसौदियाराजवंशपितृउदयसिंह मातारानीजीवतकँवर चितौड़राजशेखरे मृदापवित्रस्थले चेतक हेतक ताण्डवम प्रतापनाम मुगल हिले अष्टादशकिलोम भाल संग तलवार लम्बसुशोभिताम पृथ्वीराजपत्रम पठन तू मुगलशासन से लड़े तलवारभालचेतके प्रतापचन्द्रन झुके कीकानाम नझुके मुगलशासन सेनझुके स्वाभिमान से भरे हल्दीघाटी में लड़े अरावलीपर्वतशिखरते जने गुरू जैमलमेड़तियासे शस्त्रास्त्र है सीखे चितौड़पुत्रहै जने प्रताप ईश है शिवम।।         डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

वफा न करना

वफा न करना, वफा न करना, वफा न करना उस बेखबर से वफा न करना जान न पाती दिल की लगी को मचलते मन को मेरी पसन्द को उस बेखबर से वफा न करना कमसिन हसीना आँखें शराबी दिल की लगी में होती खराबी तड़पते मन को चमकते तन को उस बेखबर से वफा न करना वफा न करना, वफा न करना, वफा न करना। नजरें मिलाने को दिल चाहता है मैं भी प्यार करूं मेरा दिल चाहता है मिल जाय इक प्यारी सी, जिसके ख्वाबों में खो जाएँ आसमान की कोई परी से नजरें मिलाने को दिल चाहता है मीठी सी मुस्कान हो जिसकी बातों में खो जाएँ फूलों सी सुन्दर आँखों से नजरें मिलाने को दिल चाहता है। साहिल

शिव वन्दना

विषय ▪ इष्ट देव महादेव को समर्पित वन्दना रचियता ▪ डाॅ• राहुल शुक्ल'साहिल' मन में विचार उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, वाणी में वचन उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, इन्द्रियों में संयम उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, श्रम में कर्म उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं। जीवों के देव की वन्दना हम करते हैं , असुरों के देव की वन्दना हम करते हैं , मानव के देव की वन्दना हम करते हैं , देवों के देव की वन्दना हम करते हैं । समय के देव की वन्दना हम करते हैं , प्रेम के देव की वन्दना हम करते हैं , कलियुग के देव की वन्दना हम करते हैं , हर युग के देव की वन्दना हम करते हैं । सत्य के देवता की वन्दना हम करते हैं सौन्दर्य के देवता की वन्दना हम करते हैं , शान्ति के देवता की वन्दना हम करते हैं , गणों के देवता की वन्दना हम करते हैं । विघ्नहर्ता की वन्दना हम करते हैं , जगतकर्ता की वन्दना हम करते हैं , मंगलकर्ता की वन्दना हम करते ह

प्रसंग प्रेरणा

ॐ卐 प्रसंग प्रेरणा 卐ॐ एक बार एक आदमी गृहस्थ जीवन से परेशान होकर एक महात्मा जी के पास पहुंच गया। उनके सानिध्य में रहने लगा।उसने महात्मा जी से पूछा कि इतना दुख क्यों है गृहस्थ जीवन में मैंने तो किसी का दिल नही दुखाया और अपना कर्तव्य पालन करता रहा फिर भी परिवार जनों की अपेक्षाए मुझसे बढती गयी जो दुख का कारण बनती है। महात्मा जी ने सुन्दर उत्तर दिया, देखो भाई दुख तो सब जगह है और सुख भी सब जगह है बस हमें अपनी सोच बदलनी होती है, अपेक्षाए तो मानव जीवन में रहती ही है बस अनावश्यक नही होनी चाहिए गृहस्थ जीवन यही तो सिखाता है कि जिसमें हमें प्रेम है वह हमारी अपेक्षाओं औल जरूरतों के लिए बहुत परेशान न हो या हम भी उसकी मदद करें । दुख के बाद सुख तो आता ही है। काली रात के बाद प्रकाशवान सुबह आती ही है। प्रकृति के नियम सर्वोपरि है।तुम मेरे पास भी तो अपेक्षाओं से ही आये हो क्या परिवार जनों का प्रेम लगाव और अपेक्षायें आपके प्रति यहाँ आने से समाप्त हो गई, नही ? महात्मा जी की बात सुनकर उसको अपने परिवार की याद आने लगी और वह फिर से घर चला गया और खुशी से रहने लगा। धन्यवाद

परिचय डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

☆ परिचय ☆ नाम - डाॅ•राहुल शुक्ल पिता - श्री बुद्धि नारायण शुक्ल एवं माता - श्रीमती कान्ती शुक्ला शैक्षणिक योग्यता - स्नातक कला 2006 उ•प्र• राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय इला• व्यवसायिक योग्यता - बी•एच•एम•एस 2008 जीविजी विश्वविद्यालय ग्वालियर म•प्र• साहित्य प्रकाशन - 1-2 बार मासिक स्थानीय पत्रिकायों में, अनुज भ्राता ♧ ▪ मृदुल शुक्ल (एम बी ए) ▪ अतुल शुक्ल (नेत्र सहायक) ▪ उत्कर्ष शुक्ल (बी•टेक अन्तिम) बहन ♧ ▪ पूजा शुक्ला (पी•जी) विवाहित उद्देश्य - पिछड़े क्षेत्र एवं ग्रामीण व शहरी लोगों की चिकित्सकीय सेवा व उचित सलाह रूचि - वैज्ञानिक अध्यात्मवाद, हिन्दी साहित्य अध्ययन व लेखन, सर्वेक्षणात्मक भ्रमण आदि, पत्नी - कान्तिप्रभा शुक्ला शिक्षिका सन्तान - पुत्र (6वर्ष) अंशुल शुक्ल ☆卐वर्तमान संक्षिप्त कार्य विवरण 卐☆ संजीवनी वेलफेयर सोसायटी के मिशन हेल्दी इंडिया परियोजना को बढ़ाते हुये इलाहाबाद के 20 ब्लाकों में से 12 ब्लाकों ,

बैरी

दिनांक - 12/08/2016  (शुक्रवार)      विषय - दुश्मन/ बैरी/ शत्रु    बैरी का भी हो कल्याण , ऐसा भाव हमें दें  माँ , अनजान पहचान बना लेवें , ऐसा मधुहास हमें दें  माँ , शत्रु भी  बनें  मित्र , ऐसी झंकार हमें दें माँ , मातृभूमि के दुश्मन से , लड़ने का साहस हमें दें माँ , जग सेवा का हो कर्म , श्रम का सामर्थ्य हमें दें माँ , प्रेम  सुधारस  महकायें , वो मलय पात्र हमें दें माँ ।।                     साहिल

हिन्दी भाषा

हिन्दी भाषा हिन्द है हम हिन्दी से प्रेम होना चाहिए , कला ज्ञान विज्ञान का ज्ञाता, भाषा हमें बनाती है, नव प्रकाश की किरण है हिन्दी , आत्मोत्थान कराती है, देवभाषा माँ से प्रेम होना चाहिए। आदि मनु से मानस तक, भाषा हमें उठाती है , सूर कबीर तुलसी भाषा, नवयुग लाती है , आदर्श बनो स्वामी सुभाष सा, भाषा भाव सिखाती है । मिश्रित भाषा ही तो जड़ है , अपराध विकृतियों की, निज भाषा हिन्दी में , शक्ति मानस बदलने की , संस्कार सिखला कर भाषा , व्यक्तित्व बनाती है । विश्वास शक्ति आ जाये, समाज बदलने की, उपेक्षित गंगा गायत्री गौ इस संसार से, पनपा अत्याचार भ्रष्टाता मनो विकार से , बीज डालकर स्वच्छता मन में प्रेम जगाइऐ, हिन्द है हम हिन्दी से प्रेम होना चाहिए। आलिंगन कर भाषा से , प्रेम सभी को सिखलाओ , प्रकृति बदल दो सम्प्रदाय की , हिन्दुत्व सभी में ले आओ , बीज मंत्र है सनातन , जन मानस को समझाओ, हिन्द है हम हिन्दी से प्रेम होना चाहिए।।                धन्यवाद             डाॅ राहुल शुक्ल

देशभक्ति

देशभक्ति का आज चलो गुणगान करें जिस देश जाति में जन्म लिया, उसका ही गुणगान करें जिस धरती पर जन्म लिया उस संस्कृति का सम्मान करें जिस धरती का अनाज है खाया उस समृद्धि का ध्यान रहे जिन गलियों में बड़े हुए उन रास्तों का संज्ञान रहें जिनके अनुभव से कदम बढ़ें उसका हमें अभिमान रहे बुरी नजर किन लोगों की उन लोगों पर भी ध्यान रहे घुसपैठियै सेंध वही लगाते हैं अन्न जहां का खाते है सेना की रक्षा गौरव का अभिमान रहे जिस देश में हमने जन्म लिया उसकी रक्षा का भान रहे मातृभूमि की शान रहे संस्कृति का उत्थान रहे देशभक्ति का आज चलो गुणगान करें।। साहिल

कन्या भ्रूण हत्या

29/04/2016 ✝कन्या भ्रूण हत्या/ महिला शोषण✝ बिन प्रकृति के इन्सान की कल्पना, तो ऐसी है जैसे बिन पानी की नदियाँ, बिन सूरज के ताप, बिन पौधों की हवायें, पुंकेसर के परागकण बनायें कलियाँ, कलियाँ पूछती सवाल एक बढ़िया , फूल बनकर सुन्दरता हम फैलाते, खुद खिलकर सबको हँसना सिखाते, किसने हक दिया उन बेदर्दो को, मैं कली हूँ तो क्या, फूल बनने का हक नही मुझे, बेवजह बिन कारण तोड़ेगा मुझे, खिलता देख उस माँ से अलग करेगा मुझे, जिन टहनियों में मुझे जन्म मिला, पूरी होती हर तमन्ना, अब शुरू होता जीवन ही खत्म हो जायेगा, कैसे बनेगी कली फिर फूल , फूल कैसे देगा दुनिया को फल, जब समाप्त होगा पहले ही जीवन, मेरे लिए क्या कोई नही ईश्वर, क्यूँ नही मिलती उनको सजा, जो खिलने से पहले ही करते हमें जुदा, सब जीवों में शक्ति होती एक समान, फिर क्यूँ इंसाफ होते असमान, कलियों के जैसे समाज में अत्याचार, बिन नारी के कैसा संसार, फिर क्यूँ होता अत्याचार, कलियाँ है पूछती प्रश्न हजार, पुरूषों के समाज में क्यूँ होता बलात्कार, बढ़ते अत्याचार, और भद्दा व्यवहार , कन्या भ्रूण हत्या कलियों की चीत्कार, गूंजती दहेज बलि की,करूण पुकार, प्रति

भगत सिंह

सरदार भगत सिंह  जन्म: 27 सितम्बर, 1907  निधन: 23 मार्च, 1931 उपलब्धियां: भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र की स्थापनाके लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका।शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गया। लेखन-  डाॅ• राहुल शुक्ल

युवा अभिमान

22/07/2016            ♢ युवा अभिमान ♢ हिन्द देश के युवा तुम , संस्कृति के उत्थान हो , रोक कोई सकता न तुमको , तुम जीवन के सम्मान हो , क्यूं डरते हो क्यूं हटते हो , डगर भी तुमसे छोटी है , मान तुम्हारा है अनन्त , सबका तुम अभिमान हो। रोक तुम्हें सकता है कौन , ठान लो मन में जीत तुम , तुम किशोर हो सम्वर्धन के , मुश्किल के विध्वंश हो , पर्वत भी चढ़ सकते हो , राह सुगम बना लोगे , मान तुम्हारा है अनन्त , सबका तुम अभिमान हो । पिता का सम्मान हो तुम , प्रतिभा कौशल का तेज हो , उम्मीदें आकाश सी अनन्त होता है जीवन परिवर्तन , दुख का कर दो पूर्ण अन्त , सुख का सागर हो अनन्त , मान तुम्हारा है अनन्त , सबका तुम अभिमान हो ।           साहिल          धन्यवाद    जय हिन्द जय भारत  

योग का जीवन में महत्व

♢ योग का जीवन में महत्व ♢ जीवन की कठिन दिनचर्या, रोजगार में व्यस्त जन जन, जुड़ें अतिरिक्त प्रयोग जो दें, जीवन लाभ कहलायें योग । तन को रखें स्वस्थ, करें आसन प्राणयोग, मन को बनायें स्वच्छ, सीखें ध्यान योग । सनातन हमें सिखाता, तन मन धन से करें, मनोयोग हो सबका, कौशल है कर्मयोग । साहित्य ज्ञान विज्ञान का, गुण विशेष है इन्सान का, योग सुयोग बनाता है, मन आत्मा से जीवन का। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

किस्मत

☆किस्मत / भाग्य☆ कलयुग के जीवन में, सुख दुख की कहानी, लोग समझे इसको, किस्मत की रवानी, लोगों से आशायें, जीवन से अपेक्षायें, छोटी छोटी आशा, मिल जायें मनमाफ़िक, तो अच्छी किस्मतवाला, न मिलें मन का तो, बुरी किस्मतवाला, बदली इंसा ने, किस्मत की परिभाषा, कर्म में समाहित , भाग्य की आशा, ईश्वर पर विश्वास, लगन के साथ, सच्चा परिश्रम ही, कर्म की परिभाषा, कर्मो से बनती, किस्मत सुहानी, मुसीबत से न डरें, तो जीवन अभिमानी, जनहित हो सब काम , कौशल से भरपूर, मिलें सुखों का धाम, कर्म का कौशल ही, योग कहलाये, गीता में बतलाये, योग से हमें , परमात्मा मिल जाये, सच्चा हो काम, दुख से न डरें, मन में हो विश्वास, तो किस्मत भी बदलें, चित्रगुप्त मन में, अंकित सब हिसाब, कर्मों का जोखा लेखा, शुभ कर्म ही बनायें, किस्मत की रेखा, कर्मो से बदल जायें, भौतिक सुखों को, समझे न किस्मत, शिखर पर पहुँचें, साहिल पर कदम, छूँ लें आसमान , मिलें आपके, स्वर्ग पर निशान, बनें हम सब का, जीवन आसान ।। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

कटते पेड़

जहाँ देखो हर ज गह बेजुबान पेड़ कट रहें, जहाँ देखो हर जगह, पशु पक्षी मर रहे, जहाँ देखो हर जगह, मकान बन रहे,  क्या होगा इस जहाँ का, इन्सान क्या करें । होती बन्द आँखें तो, बन्द कर लेता, या बन्द करता उनकी आँखें, जो बन्द करके आँखें, अपराध हैं करते, इन्सानियत खो गयी, मोहब्बत हुई खत्म, कोई तो बताये इन्सान क्या करें। आरक्षण की बौछार, रोजगार की तलाश, रोटी की जुगत में, खाने का प्रयास, समय का अभाव , बदलता स्वभाव, मन में हलचल, इन्सान क्या करें । देखी समाज में नारी की स्थिति, शोषण और दबाव बदलती परिस्थिति, फलों का अम्बार, भोजन का भण्डार, फिर क्यूँ देश में भूखों की फौज, गरीबों की संख्या नेता की मौज, फौज से लड़े या फौज में रहें, कोई तो बताये इन्सान क्या करें । 24/05/2016 डाॅ• राहुल शुक्ल ईमेल - rsrahulshukla9@gmail.com