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Showing posts from February, 2017

डमरू घनाक्षरी

विधा◆ डमरू घनाक्षरी ◆ शिल्प~8,8,8,8 लघु वर्ण प्रति चरण    【बिना मात्रा के प्रति चरण 32 वर्ण,】 4चरण समतुकांत। चल अब झटपट मटकत भटकत, तन मन तड़पत, सजन सनम गम। जन भल कर हल, मचलत पल पल, टहलत दल बल, हरण दमन तम। महक चहक गल सकल बहल चल, अब हर अटकल, शरण वरण मम। नयन शयन भज, सकल नमन तज, गरल पहल बज वचन सहन दम।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल विधा ◆भुजंग प्रयात छंद◆ विधान~ (भुजंगी छंद+गुरु) [ यगण यगण यगण यगण] (122  122  122 122 ) 12 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] निशा को भुलाओ सवेरा जगाओ। दया प्रेम नाते निभाना सिखाओ।। करूँ मान तेरा मिटाओ बुराई। हरो पीर मेरी बढ़े जू मिताई।। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल ◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆ शिल्प:- [मगण मगण(222 222), दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]                  प्रभु की माया    देखी तेरी माया    है तेरा ही साया    गाओ राधा नामा    पूरा हो श्री कामा ।    माँ गंगा ने तारा    तूही मेरा सारा     तू है मेरी राधा    हूँ मै तेरा आधा।    मेरा साया कान्हा,    कैसे बीते तन्हा,    गाना गाओ सारे,    सारे दोषा टारे।    कैसे बीते रैना,

महर्षि दयानंद

      महर्षि दयानन्द जयन्ती पर विशेष दयानन्द की मधुर कथा, दिये समाज को वैदिक धर्म, मंत्र  शक्ति  जीवन आधार, फैले चहुदिशि कीर्ति कर्म।  नारी का सम्मान सदा, करों कुरीति का अंत, सकल कर्म से ही बने, ऋषि दयानन्द से संत।  ओम शक्ति सर्वत्र है, है मंत्रों से सब तंत्र, गौ गंगा गायत्री का, पूजन करें स्वतंत्र। दयानन्द प्रसार किये , यजन करो सब ओर मंगल कलश सुख मिलें, पुकार भरें किशोर।  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

मद्यपान एक विकृति

            💀 मद्यपान एक विकृति 💀 कूड़े के ढेर के पास से लोग गुजरना पसन्द नहीं करते, चरित्रहीन गन्दे व भद्दे व्यवहार वाले लोगों को समाज में हमेशा नापसंद किया जाता है। वो समय दूर नही जब ऐसा व्यवहार मद्यपान करने वालों के साथ भी होगा।             सभी जीवों में श्रेष्ठ मनुष्य अपनी वैचारिक शक्ति के बल पर सर्वश्रेष्ठ कहलाते हैं। जब से मानव जाति की उत्पत्ति का इतिहास मिलता हैं तभी से मदिरापान, मद्य पान, ध्रूमपान, आदि का भी इतिहास मिलता है, ऐसा क्या विशेष है जो पशु तथा जानवर प्रयोग नही करते और मनुष्य अपने मन व तन को दुरुस्त और उत्प्रेरित करने के लिए मद्य या नशे का प्रयोग करते हैं। सृष्टि में सभी जीवों की उपयोगिता है परन्तु मनुष्य की उपयोगिता, सहभागिता और उत्तरदायित्व समाज के प्रति सबसे अधिक है। उन सब से परे मनुष्य केवल रोटी के ऊपर के स्वर्ग (धन)को कमाने में लगा है और उससे अपनी विलासिता को बढ़ाता जा रहा है।          दुख तो यह है कि जो अत्यंत निर्धन है वे भी इस वैश्विक पशुता या वैश्विक विकृति मद्यपान में फँस कर अपना और परिवार का जीवन बर्बाद कर रहा है।        कौन कहता है की नशा धीरे धी

भगत जी

🌼🙏🕉  नित्य नमन   🕉🙏🌼 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 हे हरि हरिजन हार ह्वै, कंठ कूकते काय | रहो रमे रासभ रजुअ, आपु आपुने आय || 🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂 आज रौ दुस्साहस~ म्है म्हांकी मायड़ मरां, मायड़ म्हांके नेह | पूत  प्रेमलो  भाव  यौ, देख  मेघ  रौ मेह || 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 मानव   दोष   सदा    ही  रहते, बालाजी | हरि  सब  ही  दोषों  को  सहते, बालाजी | पर  जब   उल्लंघित   हो  जाती  मर्यादा, करते वध प्रभु कुछ नहि कहते, बालाजी || 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 ©भगत

जीवनी श्री राजवीर सिंह

🌷🙏🏻🌷🌹🌷🙏🏻🌹🙏🏻 अपनी संस्कृति और धर्म के बारें में संस्कार बाल्यावस्था से ही किसी किसी बालक में विशेष रूप से उजागर होते दिखते हैं। अपनी भाषा और वैदिक संस्कृति के आचार विचार पर चलने वाले लोग सदा ही श्रेष्ठ कर्म करते हैं और अपने एवं राष्ट्रीय हित की भावना से ही कर्म एवं  धर्म को निभाते हैं। तरौंदा, कानपुर, उ• प्र• में 1 मार्च सन् उन्नीस सौ छिहत्तर में  माता  श्रीमती विद्यावती एवं  श्री गजराज सिंह  जी के यहाँ जन्में श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी  श्री राज वीर सिंह  जी ने आर्य समाज के माध्यम से वैदिक और योगिक ज्ञान लेकर हिन्दी एवं संस्कृत साहित्य के माध्यम से देश के कलेवर को वैचारिक क्रान्ति के माध्यम से बदलने एवं सत् साहित्य प्रदान करने के लिए बेड़ा उठाया और कई हाथ उनके साथ हो लिए।             वह दिन दूर नही जब साहित्य संगम नाम से चल रही संस्था में शानदार नेतृत्व क्षमता और स्नेह के बल पर नूतन मुकाम खड़ा होगा और देश को साहित्य की शक्ति का आभास होगा। साहित्य समाज में विचार क्रान्ति द्वारा विभिन्न सकारात्मक परिवर्तन कर सकता है। वैदिक मंत्रों के अद्भुत एवं शानदार ज्ञान से डी• ए• वी•

सिंहनाद छन्द

◆सिंहनाद छंद◆ विधान~ [ सगण जगण सगण गुरु] (112   121   112   2 ) 10 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] अब छोड़ श्याम मग मेरौ। यह  काम  भावत न तेरौ।। मम   गाँव   दूर  बरसानौ। सच बात"सोम"यह मानौ।।            ~शैलेन्द्र खरे"सोम" ◆सिंहनाद छंद◆ विधान~ [ सगण जगण सगण गुरु] (112   121   112   2 ) 10 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] मन  भावना भजत  तोहै । सुख साधना सकल मोहै।। प्रभु राम को नमन मेरा। सत काम है भजन तेरा।।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

आह्वान

🌷🌹🙏🏻🌷🌹🌹🙏🏻🌷               आह्वान आह्लादित करने आया हूँ, आह्वान  गीत सुनाता हूँ, गहन नींद से नवयुवा को, आज  जगाने आया हूँ।   रोती हुई वसुंधरा की, पीर सुनाने आया हूँ, रोती हुई नैतिकता का, धीर बताने आया हूँ।  कवियों के स्वागत में, आह्वान गीत बनाता हूँ, सकल लेख हो हितकर, मधुर संगीत सुनाता हूँ।  नारी के सदा मान की रीत बनाने आया हूँ, वृद्धों के सदा मान की जगरीत बनाने आया हूँ।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल 

वर्ष छन्द

◆वर्ष छंद◆ विधान~ [ मगण तगण जगण ] (222    221  121) 9वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत] तेरी  गाथा सुंदर  नाम। बोलो सीता की जय राम।। भागै माया क्रोध बिसार। पावै काया ज्ञान विचार।।   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल 🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻 परिवार बिना जन नही, विचार  बिना मन नही, माता पिता भाई बहन, संगिनी बिना जीवन नही।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

वेद मंत्र पद्यानुवाद

ओ३म् नमस्ते ओ३म् विनय चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य लक्ष्यों न तो मातरावन्वेति धातवे। अनूधा यदजीजनधा चिदा ववक्षत्सद्यो महिदूत्यां३ चरन्। साम-१/१/२/२/२ पद्यानुवाद यदि रहना खुशहाल। करना जीवन की पड़ताल।। जब घर में शिशु काआना हो शिशु शिक्षण की विधि नाना हो व्यर्थ न जाने देना जीवन का यह स्वर्णिम काल।करना------- जब तरुणाई रूप दिखाए भव तरने की रीति सिखाए जीवन रणमें मिले सफलता दीजे असिऔर ढाल।करना---------- पालन पोषण की क्षमता हो उदर किसी का भर सकता हो माता और पिता की करने वाला हो प्रतिपाल।करना------------- द्वार सभी के लिए खोलना सत्पात्रो का उर टटोलना निज अनुभव की निधियां सारी तू हंस कर दे डाल।करना------------ वेद ज्ञान घर-घर पहुंचाना ऐसा व्रत  साथी अपनाना तेज ओज से चमक उठेगा निर्मल तेरा भाल।करना------ ----------- जागेश्वर प्रसाद''निर्मल''

वीरवर छन्द

◆वीरवर छंद◆ शिल्प~ [नगण सगण लघु] (111 112   1) 7 वर्ण प्रति चरण,4 चरण 2-2 चरण समतुकांत। चरण नित  चाप। भजहुँ हरि आप।। सहज    गुणवंत। जपत  नित संत।। परम   सुख  मान। करहुँ     गुणगान।। सकल सिध काम। नमन   प्रिय  राम।।            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

वेगवती छन्द

★वेगवती छंद★         (अर्ध सम वर्णिक) मात्रा विधान :- विषम पाद~112 112 112  2[10वर्ण] सम पाद~211 211  211 2 2[11वर्ण]" •••••••••••••••••••••••••••••••••••••• कहना करना सम होता। मोह दया ममता धन होता।। तन का गहना मन होये। नूतन राह मिलें तम खोये।।      डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

निष्ठा

          सच्ची निष्ठा  सच्चा दोस्त। मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।।।। कोई दिखता  ही नहीं रास्ता बताने वाला। सुख में बनता साथी दुख में भी  रखवाला।। पहचान ले बारिश में आँख के भीआँसू को। प्रेम  सहयोग करता बने भूख में निवाला।। रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस।।।।।। दिनांक- ०७/०२/२०१७                          निष्ठा  निष्ठा -निश्चय, दृढ़ता, एकाग्रता, तत्परता, भक्ति, श्रद्धा आदि समस्त भावों का समावेश है।निष्ठा एक अनूठा अनुराग , एक अद्वितीय विश्वास है। एक सच्ची मेहनत, लगन का द्योतक है निष्ठा। लेकिन आज हमारे समाज में आधुनिकता के साथ निष्ठायी भाव भी बदल रहे हैं। हमारे समाज का मानवीयकरण निष्ठावान की बजाय निष्ठाहीन होता जा रहा है, इसकी मुख्य वजह अकर्मण्यता निरुत्साह है, क्योकि किसी कार्य के प्रति निष्ठा का संचार तभी होता है , जब हम उस कार्य के प्रति उत्साही होते हैं। उस कार्य को करने की उमंग भावना जागृत होती है, वह उत्साह, वह उमंग हमें उस कार्य के प्रति उत्साहित करता है, हमें निष्ठावान बनाता है। जब हमें कोई कार्य मिलता है, या किसी कार्य का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है, तो हमें यह नही ज्ञात होत

इन्द्रवशा छन्द

◆इन्द्रवशा छंद◆ विधान~ [ तगण तगण जगण रगण] (221   221   121  212) 12वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] माया जुटाई  कितने प्रकार से। कैसे बचेगा अब काल मार से।। सूरे अभी सम्हल नाम जाप ले। गोविन्द जू  गाकर मेट ताप ले।।                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

धुंध

🙏🏻धुंध/ कोहरा🙏🏻 🌫🌫💦💦💦🌫🌫 समझ नहीं पाया मैं कुछ साफ दिखा नहीं शरद का धुंध है कि मेरी नजर का धोखा है मेरी आँखें खराब हैं या हवा का झोंका है मन भी परेशान रहता है कुछ समझ आता नही छाया सोच पर धुंध है विचारों का बिन्दु बन्द है स्वर्णिम किरणें आयेगी भानु सकल आभा से ही तन मन प्रफुल्लित होगा है प्रसून सी अभिलाषा फैले प्रकाश की आशा हटे राह से कुहासा नेह प्रेम की लहरों से पायें जीवन भाषा धुंध घटेगा डरो नही कठिन डगर है हटो नही राह मिलेगी लगन तो रख धैर्य साथ का यतन तो रख। निराकार की भक्ति निखारे आत्मा को खुलें चक्षु ज्ञान से हटे अज्ञान का धुंध। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

इश्क

वो इश्क में मशहूर हुए उनका मुकाम था, हम इश्क में बदनाम हुए हमारा अंजाम था, बदला बेवफाई का लिया मोहब्बत से, किया सबसे प्रेम ये हमारा इंतकाम था । वो रातें बेचैन थी , वो यादें जहान थी , हम थे अकेले, पर वो अन्जान थी । वो मोहब्बत के दिवानें के जोश थे, हम हुस्न के मंजर में मदहोश थे, तेरी यादों को जिन्दगी बना ली, दिवानगी में उड़ गये हमारे होश थे । मोहब्बत को दिल का जोश बना लेगें , दिल में इश्क की ज्योति जला लेगें , वो दीन दुखी जो है बिन आशियाने के , उन अन्जानों को भी गले लगा लेगें । डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

बधाई सन्देश प्रारुप

पत्रांक - 1 साहित्य संगम द्वारा भेजा जाने वाला पत्र 👇 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳                   सेवा में,                माननीय नरेन्द्र दामोदर दास मोदी,               प्रधानमंत्री कार्यालय नई दिल्ली    सत्प्रवृत्ति के सम्वर्द्धन एवं समाज में वैचारिक क्रान्ति द्वारा आधुनिक हिन्दी साहित्य में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को अत्याधुनिक सरल व लघु सत् साहित्य प्रदान करने के उद्देश्य पर कार्यरत *साहित्य संगम संस्थान* की साझा पुस्तक *एक पृष्ठ मेरा भी* का विमोचन कार्यक्रम आर्य महासम्मेलन, इन्द्रप्रस्थ विस्तार, नई दिल्ली  में 28 जनवरी 2017 को किया जा रहा है। साझा संकलन में भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 34 साहित्यकारों ने अपने अथाह रचना संकलन से सामाजिक राष्ट्रीय व प्रेरक विषयों से सम्बन्धित रचनाओं को संकलित कर साझा पुस्तक *एक पृष्ठ मेरा भी* का प्रकाशन किया है।         अतः आपसे निवेदन है कि हमें साझा पुस्तक *एक पृष्ठ मेरा भी* के प्रकाशन, विमोचन और भविष्य में साहित्य क्षेत्र में प्रगति व विकास के लिए आशीर्वाद तथा शुभकामना प्रदान करें। आपकी बधाई व शुभकामना के शुभे

निष्ठा

🙏🏻 निष्ठा।  🙏🏻 निष्ठा और लगन का नाता, नेह भाव समता लाता। सब कार्य पूर्ण हो जाते है, जीवन सफल बनाते हैं। जो भगवत भजन सुनाते हैं, जनहित धर्म निभाते है। जो कठिन डगर चढ़ जाते हैं,   वो ही मनु कहलाते हैं। निष्ठा से कर्म निभाते हैं, वो पर्वत चढ़ जाते हैं। दुख में आनन्द जगाते हैं, सुख में हर्ष मनाते हैं। पल पल प्रतिपल मन है धारा, सकल प्रेम जग है सारा। साहस धीरज जग के दाता,   हंस वाहिनी है माता। निष्ठा और लगन का नाता, नेह भाव समता लाता। ✍  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

मन पर तमाचा

     म न पर  तमाचा देखता हूँ राजव्यवस्था मन पर तमाचा पड़ता है, सुनता हूँ नारी चित्कार ज़हन पर तमाचा पड़ता है, देखी जब गरीबी की मार गहन तमाचा पड़ता है, बिन भोजन मरने की खबर घनघोर तमाचा पड़ता है, वृद्धों की सुन करुण पुकार पूतों का तमाचा लगता है, नेताओं की सुन कर बात सोच विचार दहलता है,    गंदे फूहड़ गीतों को सुन सुर ताल पे तमाचा पड़ता है, गन्दे चित्रों के प्रचार से राष्ट्र पर तमाचा पड़ता है, सर्वोपरि है संस्कृति राष्ट्र धर्म सबको समझाना पड़ता है, सोयी आत्मा को झकझोर सबको जगाना पड़ता है,   मान आचरण विचार का भान जगाना पड़ता है।।  ✍   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

समीक्षा आदरणीय भगत जी की

विद्वज्जनों की सभा *साहित्य संगम* को नमन 🙏🙏🙏 पुन: समीक्षक का गुरुतर दायित्व निर्वहन करने से पूर्व अपनी अज्ञानता\अपरिपक्वता की क्षमापना का आग्रह रखता हूँ | आप सभी उदारमना कृपालु रहें~ ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ आज द्वितीय पारी में ~~~ पहली रचना *आ० एस. के. कपूर 'श्री हंस' जी* की रही | 🙏 आपने वर्तमान सिनेमा के भटकाव पर चिंता व्यक्त की और अपेक्षा की कि सिनेमा संदेश व शिक्षाधारित बने | चरित्र निर्माण का बडा माध्यम हो सकता है सिनेमा | बहुत सुन्दर 🙏 दूसरी रचना *आ० राजेन्द्र कुमार सारस्वत जी* की रही | 🙏 आपने सिनेमा पर पश्चिमी प्रभाव को दर्शाते हुये भाव रखे | संगीत के माध्यम से कहा कि भारतीय स्वर लहरियों में ढ़ला सिनेमा आज की आवश्यकता है | पश्चिमी फूहड़ता त्याज्य है | बहुत सुन्दर 🙏   तीसरी रचना *आ० रितु गोयल 'सरगम' जी* की रही | 🙏 आपने सिनेमा को ग्लैमर का केन्द्र बताते हुये कहा हि यह यथार्थ के धरातल से दूर हो गया है | आधुनिकता के नाम पर अस्मिता को चोट पहुँचा रहा है | नये व पुराने सिनेमा का उदाहरण प्रस्तुत किया | बहुत सुन्दर🙏 चौथी रचना *आ० सुमित सोनी जी* की रही