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Showing posts from November, 2016

देश की सामयिक परिस्थितियाँ

🌷💐🌷💐🌷🌷🌷💐💐          देश की सामायिक परिस्थितियाँ कालाधन है थोक में, मिटे देश का रोग, मुद्रा बदली देश में, क्यूँ मचल रहें है लोग, उन्नीस सौ अठत्तर में भी,बन्द हुये थे नोट, निर्णय उचित देश हित में, करें सभी सहयोग। चाणक्य नीति भी कहती एक विचार, देश में कभी न बढ़े चोरी भ्रष्टाचार, समय पर हो यदि मुद्रा का बदलाव, बदलें अपनी सोच तो बढ़े प्रेम व्यवहार। उनहत्तर वर्ष बीत गये, हुये थे आजाद, देश अब तक अर्थ कृषि में, कितना है आबाद, राजनीति ही कूटनीति है, हमें चाहिए वोट, गाँधी ऋषियों के देश में फैला जातिवाद।                            उत्पादन निर्यात से बढ़े रुपये (₹) का मान, अनभिज्ञ मोदी को बोल रहे विदेश यात्री जान, विपणन पर्यटन तकनीकी से होगा रोजगार, बदल रहा वो देश को, भारत बनें पहचान। उनकों क्या नही दिखती बेरोजगारों की हार, भर्ती की मारामारी में भी बेचारे खा रहें है मार, हल्ला कतार का विद्रोही मचा रहें हैं आज, गरीबों की देख लो राशन के लिए कतार। राष्ट्र हित स्वहित जन जन को बदलना होगा, आतंकवाद से नही खुद से ही लड़ना होगा, परिवर्तन की लहर काल में, मोदी है शुरुआत, जित

श्री विष्णु ध्यानम्

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹                 अथध्यानम्  शान्ताकारं भुजगशयनम् पद्मनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाग्ङम्।। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।   भावार्थ ☆ जिनकी आकृति अतिशय शान्त है, शेषनाग की शय्या पर करते है शयन जो, जिनकी नाभि में कमल विद्यमान है, जो देवों के ईश्वर जगत के आधार है, जो आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त है, नील मेघ के समान जिनका वर्ण है, अति सुंदर जिनके सम्पूर्ण अंग है, जो योगियों द्वारा ध्यान से प्राप्त होते हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म मरण भय को हरने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान, श्री विष्णु का हम शत शत नमन करते हैं।  🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻    ।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।

सम्मान

          सम्मान  करें हम अपनी माता का सम्मान, करें हम अपने पिता का सम्मान, करें बड़ो का आदर सम्मान, करें हम गुरुजनों का सम्मान।  सीखें हम धरती माता से सम्मान, सीखें हम आकाश पिता से सम्मान, करे प्रकृति का आदर सम्मान, सीखें हम देवों से सम्मान। करें हम संस्कृति का सम्मान, करें हम धर्म  का सम्मान, हो सम्मान देश सम्प्रदाय का, करें हम राष्ट्र का सम्मान। करें हम महिला का सम्मान, करें हम परिवार का सम्मान, कर्म विचार हो चरित्र शुद्ध, करें हम समाज का सम्मान। करें हम परिश्रम का सम्मान, करें हम श्रेष्ठ ज्ञानी का सम्मान, हो लगन कर्मगत बनाये स्वाभिमान करें हम जन जीवों का सम्मान।  ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

भूख

💐💐💐💐💐💐💐💐💐     🌷🌷🙏 भूख 🙏🏻🌷🌷 बचपन में ही समझ गया था सबसे जरूरी है भूख पेट भरने को सब जतन भूख के लिए ही हम पढ़े, पढ़ाये और कमाये पूरी करें परिवार की भूख भूख से तड़पते गरीब भूख के लिए लड़ते पशु बच्चे का भूख में रोना रोटी की कीमत का एहसास पेट की भूख के लिए हम दौड़ते है सारा दिन कही भूख का कर्म है यारों कहीं भूख का नाम नहीं नही मिलती बहुतों को रोटी बहुत खाते हैं भूख की गोली पेट नहीं भरता गरीबों का कुछ कम करतें हैं मोटा पेट भूख न है बहुत सताया कई जीव भूख से मरते हैं कुछ खा खा के करते मधुमेह बहुत कुपोषण है भारत में कितना फेंका जाता भोज शायद मेरी सोच गलत हो भूख बढ़ाता प्यार है भूख से भ्रष्टाचार है भूख जगाती लालच है भूख से ही जीव है भूख के लिए परेशान है भूख से ज्ञान है भूख ही भाव है भूख बनाती इंसान है भूख से ही हैवान है भूख न हो जीवन में तो प्रेम नेह सभी में भाव और सहकार हो भूख न हो तो इस दुनिया में सब जीव एक समान हो। ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल 

नारी शोषण

विधा  ◆उड़ियाना छंद     [सम मात्रिक]◆ विधान– [प्रति चरण  22 मात्रायें,  12,10 पर यति?अंत में एक ही गुरु। चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत।]         समाज की पीर मान मर्दन नारी का,        फैलती दनुजता। बदल रहा है विचार,      दमित है मनुजता। बिगड़ा मनुज आचरण,          मद नशे से भरा। असहन युग की पीड़ा,          दवा खोजे जरा। भाषा संस्कार नींव,          बुलंद बनाइऐ। रोग व्याधि अनाचार,          जग से हटाइऐ। कृषक धरा के गरीब,           देश की पीर है। संसाधन का दोहन,         प्रकृति का धीर है। ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

पथ भ्रमित होती बाल शिक्षा

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 पथ भ्रमित होती बाल शिक्षा क्यूँ नहीं होता नया जगत में, शिक्षा क्यूं भरमाये क्यूँ नहीं लगता मन वंदन में, क्यूँ किशोर शरमाये। क्यूँ नहीं मिलती सीख जगत में, क्यूँ भाषा भरमाये। क्यूँ सीखे हम आंग्ला भाषा, बात समझ न आये। क्यूँ नहीं होती नैतिक शिक्षा, बस पढ़े और कमाये। क्यूँ नहीं हमको कोई सिखाता, कैसे देश बचाये। क्यूँ नहीं मिलती गुरुकुल शिक्षा, कोई हमें बतलाये। क्यूँ वेदों को हम नहीं पढ़ते, कोई आज समझाये। क्यूँ नहीं होता नया सवेरा, कोई हमें बतायें। क्यूँ नहीं होती जन हित शिक्षा, कोई तो सुझाये। क्यूँ नहीं होती खेल खेल में, विद्या और पढ़ाई। क्यूँ नही मिलता सुविचार जो, मन मंगल बनाये। क्यूँ आते हैं दूषित विकार, कोई तो बताये। क्यूँ नही बढ़ती हमारी इच्छा, किसको शीश नवायें। क्यूँ मिलती है भ्रमित रीत, सुझाव कोई सुझाये। शिक्षा में होती कला सुरुचि तो मन भी लग जाये। क्यूँ नहीं पढ़ते गान गीत में, सब याद हो जाये। क्यूँ होता हैं विषय का बोझा, इसको कम करवायें। क्यूँ नहीं मिलती जीने की शिक्षा, दुख अंत हो जाये। क्यूँ धुत है नशे में युवा किशोर, कोई 

हमारा अतीत और वर्तमान

🌷 🙏🏻 हमारा अतीत और वर्तमान 🌷🙏🏻 वर्तमान की भागदौड़ ने, भुला दिया गुजरा अतीत, वो आम बगीचा भुला दिया, बचपन का खेल भूल गया, माँ की लोरी भूल गया, स्कूल की डगर भूल गया, उस अतीत को दबा दिया, वर्तमान ने बड़ा बना दिया, सब ने कहा बचपना छोड़ो, भविष्य बनाओ सपना छोड़ो, बचपन में सीखें हम पढ़ाई, अब केवल कमाई की लड़ाई, जो सीखे हम बचपन में, वो अतीत हम कैसे भूलें, जो सुख भरी थी यादें, उन यादों को कैसे भूलें,  अतीत की लहरें आने दों, नया सिन्धु बन जाने दों, भविष्य भी होगा सुन्दर, मन कौशल में रम जाने दों, जो बुरा हुआ उसे भूलें, शुभ सत्य आज बना लें,  दुख के बादल छँट जाने दें, जब होगें अपने विचार सशक्त, देश का भला भी कर पायेंगे, अपना अतीत और वर्तमान,  दुनिया को बतलायेगें, अतीत नहीं जो बीत गया, अतीत सीख हैं हर सुख की, जनहित कर्म सेहत सम्पन्न, चलें राही अविचल बिना रुके, सुपथ संस्कारित वर्तमान सें, सुन्दर ही भविष्य गढ़ लें।।  ✍  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

वन्दना

◆दोधक/बन्धु/मधु छंद◆ विधान~ [भगण भगण भगण+गुरु गुरु] ( 211 211 211  22 11वर्ण,,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 मंथन हो जन मंगलकारी। बंधन हो शिव वंदनकारी।। चंदन भावन हो शुभकारी। राहुल जीवन हो भवहारी।। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

आशा ही जीवन है

☘ आशा ही जीवन है         (नवगीत शैली)         12 ×11 = 23 आशा ही जीवन है, उमंग  जगाइए। रास्ते के काँटों को, मिलकर हटाइए ।। आशा ही जीवन है, लगन तो लगाइए । निष्ठा व सुकर्म से जीवन  सजाइए।  आशा ही जीवन है, सेहत भी बनाइए , उद्यम  उद्योग से , साधन भी जुटाइए।  आशा ही जीवन है , दुख दर्द भगाइए, निराशा के तम में, प्रकाश तो जगाइए । आशा ही जीवन है , निराशा निकाल दें, मंजिल की ठान के , कदम तो बढ़ाइए।          डाॅ• राहुल शुक्ल              साहिल 

शिक्षा व्यवस्था

           शिक्षा व्यवस्था  शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षा  व्यवस्था समाज निर्माण की मूलभूत आवश्यकता है। ○ शिक्षा के माध्यम से मनुज रूपी जीव व समाज को बदलने व सही दिशा दिखाने का कार्य सकल व सुगम है। ○ सुव्यवस्थित शिक्षा व्यवस्था से व्यक्ति विशेष का लाभ नही पूरे समाज का लाभ है। ○ समाज में अन्ध विश्वास का अन्त होता है व रुढ़िवादिता का अंत होता है एवं समाज में जागरूकता आती है।   ○ बुराई, अत्याचार व कुरितियों के प्रति जागरूकता आयें व सामान्य जन उससे लड़ सकें।ऐसी नैतिक शिक्षा व सर्व शिक्षा की व्यवस्था की आवश्यकता है। ○ शिक्षा से बच्चों किशोरों व युवाओं में  ओजस्व, तेजस्व, प्रेरणा, ज्ञान व विद्या का अद्भुत संचार होता है जो व्यक्ति निर्माण समाज निर्माण व राष्ट्र निर्माण के लिए परम आवश्यक है। ○ गीतबद्ध, सुरूचिपूर्ण व सरल अध्यापन तकनीकी व पाठ योजना बच्चो के लिए सुगम और आसान हो जाती है।                धन्यवाद       डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

सम्मान

         सम्मान करें हम अपनी माता का सम्मान, करें हम अपने पिता का सम्मान, करें बड़ो का आदर सम्मान, करें हम गुरुजनों का सम्मान।  सीखें हम धरती माता से सम्मान, सीखें हम आकाश पिता से सम्मान, करे प्रकृति का आदर सम्मान, सीखें हम देवों से सम्मान। करें हम संस्कृति का सम्मान, करें हम धर्म  का सम्मान, हो सम्मान देश सम्प्रदाय का, करें हम राष्ट्र का सम्मान। करें हम महिला का सम्मान, करें हम परिवार का सम्मान, कर्म विचार हो चरित्र शुद्ध, करें हम समाज का सम्मान। करें हम परिश्रम का सम्मान, करें हम श्रेष्ठ ज्ञानी का सम्मान, हो लगन कर्मगत बनाये स्वाभिमान करें हम जन जीवों का सम्मान। युगाधिपति का जगत, कल्याणकारी संगत, संगम हो सृजन का, हो स्वागत की रंगत। होगा भाषा का मान, होगा सबका सम्मान, लेखनी के बिगुल से, होगी साहित्य की शान।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

स्वागत गीत

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻           स्वागत गीत  स्वागत वन्दनीया माता का, स्वागत पिता की गाथा का, स्वागत हो आज विनायक जी, स्वागत हो जन्म विधाता का। स्वागत हो अमर शहीदों का, स्वागत भारत के वीरों का, स्वागत हो आज नवयुवा, स्वागत साहित्य के वीरों का। स्वागत हो महिला शक्ति का, स्वागत भारत की भक्ति का, स्वागत हो आज कलमवीरों, स्वागत हो संगम धीरों का। स्वागत आज सम्मेलन का, स्वागत साहित्य मिलन का, उपस्थित हो रचनाकार सभी, स्वागत शामिल कविजन का।         साहिल

पुष्प/ फूल/ कुसुम/ प्रसून

                   फूल / पुष्प  जवानी अपनी जिन्दगानी अपनी, टूटता हूँ टूट जाता हूँ तोड़ा जाता हूँ, मरता हूँ खपता हूँ समर्पित हो जाता हूँ, सड़ता हूँ गलता हूँ पानी में बह जाता हूँ , पुष्प हूँ मैं ईश्वर की प्रार्थना में काम आता हूँ, खुशी मिलती मुझे कि सबको मुस्कुराहट सीखाता हूँ । पौधे से टूटकर रोता हूँ मैं, हाथों में आकर सोता हूँ मैं, बिना दर्द के दिल टूट जाता है, अपनी ही माँ  को  खोता हूँ  मैं, फूल हूँ  प्रेमी को समर्पित होता हूँ मैं, मिलती है खुशी जब दो दिलों को मिलाता हूँ मैं। बागों में उगता हूँ , कलियों से बनता हूँ , वीरों  पर  चढ़ता  हूँ , शहीदों को नवाजा जाता हूँ मैं, महापुरूषों  के सम्मान में प्रसून सहर्ष समर्पित हो जाता हूँ मैं, जन्म ही समर्पित जीवन प्रदर्शित, हर खुशी में शामिल महक समर्पित, प्रसन्नता मोहब्बत विरह और मिलन, सुमन की  खुशी  परमात्मा हो  दर्शित, तरूण हूँ  कुसुम हूँ  वृद्ध होता  नही, प्रेरणा और प्रेम सबका बन जाता हूँ मैं।              साहिल

माया

💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐 ◆विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद◆ शिल्प:- [मगण मगण(222 222), दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]                  *प्रभु की माया*    देखी तेरी माया    है तेरा ही साया    गाओ राधा नामा    पूरा हो श्री कामा ।      माँ गंगा ने तारा    तूही मेरा सारा     तू है मेरी राधा    हूँ मै तेरा आधा।    मेरा साया कान्हा,    कैसे बीते तन्हा,    गाना गाओ सारे,    सारे दोषा टारे।    कैसे बीते रैना,    मेरे भीगे नैना,    माता दूरी टारो,    भाई को भी तारो।      *डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल*

समुद्र मंथन/ मनुज मंथन

🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻        समुद्र मन्थन/ मनुज मन्थन  मनुष्य अपने चमत्कारिक गुणों एवं विचार शक्ति से ही अन्य जीवों से भिन्न विशेष विवेकवान है। मनुष्य के अन्दर अपार मानसिक शक्ति है, अपार शारिरिक एवं आत्मिक शक्ति है। जरुरत है उन्हें समझने और जागृत करने की, जिस प्रकार से देवासुर संग्राम के समय समुद्र मन्थन से चौदह प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति हुई थी। उसी प्रकार कलीयुग में मनुष्यों को जागरण, उत्थान, आत्मिक उन्नति व परमात्मात्व की प्राप्ति के लिए स्वयमेव ही जागरण व प्रयास की आवश्यकता है। जिस प्रकार समुद्र मंथन से *हलाहल विष* निकाला था वो मनुष्य की चित्त प्रवृति है जैसे कोध्र मद लोभ ईर्ष्या द्वेष की भावना भी किसी विष से कम नही, धेनू अर्थात गाय माता या *कामधेनु* गौ की सेवा से तन मन निरोगी होता है और वातावरण शुद्ध। श्वेत *उच्चै श्रवा अश्व (घोड़ा)* मनुष्य के उच्च स्तरीय कौशल पूर्ण पुरुषार्थ व यश का प्रतीक है। *ऐरावत हाथी* सफेद हाथी बल बुद्धि सच साहस व परिश्रम का प्रतीक है। *कौस्तुभ मणि* अति दुर्लभ आत्मिक दैविय शक्तियों या जागृत कुण्डलिनियों का द्योतक है। *कल्पद्रुम* निरोगता

शिव शंकर

*विधा* - ◆ चौपई छंद ◆ इस छंद को जयकरी अथवा जयकारी छंद के नाम से भी जाना जाता है। विधान~ चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ। चरणान्त में गुरु लघु (21) *विधा* - ◆ चौपई छंद ◆ महादेव जप बारम्बार । भोले शंकर कृपा अपार।  जय भोले है कृपा निधान। बनाओ वन्दन का विधान।   कैलाश देव का गुणगान। करे हम नमन वन्दन मान। उमापति शिव हरे जग पीर। पीये हम सब गंगा नीर।   💐🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻💐   डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

मनः प्रदूषण

🌷💐🌷💐🌷🌷🌷💐         *प्रदूषण* *विधा* - * बरवै छंद * शिल्प~ [विषम पदों में12 मात्राएँ सम पदों में 7 मात्राएँ] पद अंत गुरु लघु से, कलीयुग में बढ़ रहा , है सं ताप    महादेव ही हरते, है हर पाप। मन विकृति से बदलते, सुगढ़ विचार। चरित्र हनन से बदले, है आचार।  खर दूषण दनुज बना, गंदा नाँच। अनाचार की कैसे, होगी जाँच। रोको मनः प्रदूषण, हे जगपाल। तन मन को करो साफ, हो शिवलाल। वायु जल को बचाये, हो गुणगान। वनस्पति लगाये है, थल की शान। बनायें स्वच्छ भारत, मनुज महान। गन्दगी को हटाओ, हो अभियान।   ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

संगम की पुकार

      संगम की पुकार भागदौड़ भरी आपाधापी की जिन्दगी में लोगों के पास अपनी सेहत और अपनों की सेहत को रोगहीन रखना भी बड़ा दुष्कर हो गया है। आये दिन शारिरिक मानसिक रोगों एवं विकृतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमें अपनी जीविका के लिए भागते भागते ही पूरा समय खर्च हो जा रहा है। इन सबके बीच बहुत से प्रतिभाशाली युवा व प्रौढ़ लोग अपने रूचिकर कार्यो के लिए या तो समय नही निकाल पाते या फिर कौशल और प्रतिभाओं का दहन होता है। कुछ स्वशाषी वित्तविहीन संस्थानों ने सूचना प्रौद्यौगिकी के सहयोग से साहित्य कला व विज्ञान के क्षेत्र में कदम बढ़ाया। बहुत से वैज्ञानिक शोधों और यंत्र यांत्रिकी सुख सुविधायों से मनुष्य का जीवन भर गया सराबोर हो गया। फिर भी मानसिक पटल विचलित है, कुरितियाँ व्याप्त है, शुद्ध विचार लुप्त है, अनाचार आप्त है, दुष्प्रवृत्ति प्लावित है। *जरुरत है वैचारिक क्रान्ति की, आपसी सामन्जस्य की, समाकलित एकता की, जरूरत है अनुशासित जीवन की, सुपोषित सेहत पूर्ण जीवन की,जरुरत है सुन्दर तन, मन, समाजिक विचार और आत्मा की शुद्धि की।*         इतने वैज्ञानिक विकास, सामाजिक विकास और राजनैतिक विकास के बाद

श्री राम

विधा  – ◆रूपमाला/मदन छंद [सम मात्रिक]◆ विधान–24 मात्रा,/14,10 पर यति, आदि-अंत में वाचिक भार 21, चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत।             श्री राम काम करो कुछ जन हित, आदर्श श्री राम। धाम अयोध्या पूजन हो,अनुसरण है नाम। रोम रोम कण कण व्यापत, जीव है अविराम। होम है प्रभु की मन भक्ति,मरण नही विराम। रहें कर्म चरित्र का भान न हो स्त्री अपमान। शान हो सच ईमान की, हो धर्म का गान। ✍  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

यादें

🌷🌷🌷🌷🕉🌷🌷🌷🌷🌷       💐💐 *यादें* 💐💐 यादें ही है जीवन का सहारा, यादे ही है सकल कर्म अधारा, बचपन से अब तक स्मृत बातें, यादें ही है हसीन पल हमारा। सनम की याद में बीते दिन सारा। वफा से ही जीवन है हमारा। मिलती है किस्मत से ही मोहब्बत। खट्टी मीठी यादें है तेरी यारा। उनसे पहली मुलाकात की यादें। बचपन के खेलों की यादें। पिता की डाँट का मतलब समझ आया। प्यार और जस्बात की यादें। ✍ *डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल*